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लोकसभा चुनाव 2019 में नोटा |
17वीं लोकसभा के गठन के लिए भारतीय आम चुनाव 2019 की घोषणा चुनाव आयोग के द्वारा कर दिया गया है । देश में चुनाव की सरगर्मी मौसम के साथ साथ बढ़ रही है सभी राजनीतिक दल अपने अपने जुमले, झूठ की पोटली तथा लुभावने वादों के साथ चुनावी मैदान में उतर चुकी है हर तरीके से देश के मतदाताओं को लुभाने की कोशिश पुरोजोर पर है । और देश के मतदाता अपने-अपने धर्म, जाति और स्वहित के आधार पर अपने अपने नेता को चुनने की कश्मकश में लगी हुई है । अब इस स्थिति में देखना यह है कि किसके जुमले कितने शानदार हैं तथा किसके पोटली में कितने लुभावने वादे है । हमारे देश के गोदी मीडिया के दुष्प्रचार तथा राजनेताओं के लुभावने वादे के बावजूद भी हमारे देश के मतदाता बहुत हद तक राजनीतिक जागरूक हो चुके हैं ऐसे में उनके समक्ष नोटा एक विकल्प है जिसका प्रयोग करके वह अपना विरोध दर्ज करा सकते हैं । लोकसभा चुनाव 2019 में नोटा एक अहम भूमिका निभाने वाली है । आज हम इसी नोटा के बारे में आप लोगों से कुछ एक बातें साझा करना चाहते हैं लेकिन उसके पहले हमें जानना चाहिए कि इस बार के लोकसभा चुनाव किस प्रकार से कहां कहां और कब होने वाले हैं ।
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चुनाव आयोग ने भारतीय आम चुनाव 2019 की घोषणा |
चुनाव आयोग ने भारतीय आम चुनाव 2019 की घोषणा करते हुए बताया कि भारतीय आम चुनाव पूरे देश में 7 चरणों में संपन्न कराया जाएगा 11 अप्रैल से पहले चरण के चुनाव कराए जाएंगे जो 19 मई तक होंगे तथा परिणाम 23 मई को आएगा । पहले चरण का चुनाव 11 अप्रैल को 91 सीटों के लिए होगा जिसमें आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, जम्मू और कश्मीर, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, नागालैंड, ओडिशा, सिक्किम, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, अंडमान और निकोबार, लक्षद्वीप शामिल है । दूसरे चरण का चुनाव 18 अप्रैल को 97 सीटों पर होगा जिसमें असम, बिहार, छत्तीसगढ़, जम्मू और कश्मीर, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मणिपुर, ओडिशा, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पुदुचेरी शामिल है । तीसरे चरण का चुनाव 23 अप्रैल को 115 सीटों के लिए होगा जिसमें असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, गोवा, जम्मू और कश्मीर, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, दादरा और राष्ट्रीय राजमार्ग, दमन और दीव शामिल है । चौथे चरण का चुनाव 29 अप्रैल को 71 सीटों के लिए होगा जिसमें बिहार, जम्मू और कश्मीर, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल शामिल है । पांचवें चरण का चुनाव 6 मई को 51 सीटों के लिए होगा जिसमें बिहार, जम्मू और कश्मीर, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल शामिल है । छठे चरण का चुनाव 12 मई को 59 सीटों के लिए होंगे जिसमें बिहार, हरियाणा, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, दिल्ली तथा सातवें चरण के चुनाव 19 मई को 59 सीटों के लिए संपन्न कराए जाएंगे जिसमें बिहार, हिमाचल, झारखंड, मध्य प्रदेश, पंजाब, पश्चिम बंगाल, चंडीगढ़, उत्तर प्रदेश राज्य शामिल है । तथा 23 मई को इनके परिणाम घोषित किए जाएंगे ।
देश में इस समय जिस तरह का राजनीतिक माहौल बना हुआ है इसमें स्वभाविक है कि देश के मतदाता किसी भी राजनीतिक दल को अपना समर्थन ना दें एक तरफ भारतीय जनता पार्टी नें जिस तरीके से राफेल, नोटबंदी तथा जीएसटी के फायदे समझाने में नाकाम रही है वहीं दूसरी तरफ विपक्ष के महागठबंधन ने देश के मतदाताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि वास्तव में देश हित में काम करने वाली पार्टी कौन सी है ऐसे में अगर नोटा के आंकड़े बढ़ते हैं तो इसमें कोई हैरानी की बात नहीं होगी । जिस नोटा की बात हम बार बार कर रहे हैं यह क्या है आइए इसको जानने की कोशिश करते हैं ।
क्या है नोटा :-
नोटा एक ऐसा विकल्प है जिसे आप उस समय चुनते हैं जब आपको कोई भी उम्मीदवार नहीं चुनना होता है इसे गिना तो जाता है लेकिन इससे चुनाव के नतीजों पर कोई असर नहीं पड़ता है. सिर्फ ट्रेंड पता चलता है कि आखिर कितने प्रतिशत मतदाता या वोटर किसी भी प्रत्याशी को नहीं चाहते हैं. यह विकल्प रद्द मत होता है. आपको बता दें कि नोटा का मतलब है नन ऑफ द एबव, यानी ( इनमें से कोई नहीं । ) नोटा का यह विकल्प 2015 से पूरे देश मे लागू हुआ था. यह भारत, ग्रीस, यूक्रेन, स्पेन, कोलंबिया और रूस समेत कई देशों में आज लागू है. 2009 में चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से नोटा के विकल्प को उम्मीदवारों की सूची के साथ जोड़ने संबंधी अपनी बात रखी थी । बाद में नागरिक अधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ ने भी नोटा के समर्थन में एक जनहित याचिका दायर की इस पर 2013 में कोर्ट ने मतदाताओं यानी वोटर को नोटा का विकल्प देने का फैसला किया था । हालांकि बाद में चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि नोटा के मत गिने तो जाएंगे पर इसे रद्द मतों की श्रेणी में रखा जाएगा । इस तरह से यह साफ था कि इसका चुनाव के नतीजों पर कोई असर नहीं पड़ेगा माना जाता है कि वोटर लिस्ट में 'नोटा' का पहली बार 1976 में अमेरिका के कैलिफोर्निया में इस्ला विस्टा म्युनिसिपल एडवाइजरी काउंसिल के चुनाव में इस्तेमाल हुआ था ।
नोटा से पहले देश में दूसरा विकल्प
नोटा विकल्प के आने से पहले, नकारात्मक वोट डालने वाले लोगों को एक रजिस्टर में अपना नाम दर्ज करना पड़ता था और एक अलग बैलट पेपर पर अपना वोट डालना पड़ता था । चुनाव नियम, 1961 की धारा 49-O के तहत, एक मतदाता फॉर्म 17A में वोटर अपना चुनावी क्रम संख्या लिखकर एक नकारात्मक वोट डालता था फिर पीठासीन अधिकारी उसे देखकर इस पर वोटर से हस्ताक्षरित करता था यह धोखाधड़ी या वोटों के दुरुपयोग को रोकने के लिए किया गया था । हालांकि, यह प्रावधान सुप्रीम कोर्ट द्वारा असंवैधानिक माना गया क्योंकि इससे मतदाता की पहचान सुरक्षित नहीं थी आज चुनाव के दौरान, ईवीएम में उम्मीदवारों की सूची के अंत में नोटा का भी विकल्प होता है । नोटा एक तरह का नकारात्मक प्रतिक्रिया देने का एक तरीका है । गुजरात (2017), कर्नाटक (2018) मध्य प्रदेश (2018) और राजस्थान (2018) के हालिया विधानसभा चुनावों में नोटा कई मतदाताओं के बीच एक लोकप्रिय विकल्प बन गया । देश में पहली बार 2013 में चार राज्यों - छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान और मध्य प्रदेश और केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में हुआ था. 15 लाख से अधिक लोगों ने राज्य के चुनावों में इस विकल्प का इस्तेमाल किया. छत्तीसगढ़ में 3.56 लाख, मध्य प्रदेश में 5.9 लाख और राजस्थान में 5.67 लाख मतदाताओं ने नोटा का प्रयोग किया गया था ।
राजनीतिक व्यवस्था को साफ करने का नया प्रयास नोटा
भारत निर्वाचन आयोग ने दिसंबर 2013 के विधानसभा चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में इनमें से कोई नहीं अर्थात `नोटा`(नन ऑफ द एवब) बटन का विकल्प उपलब्ध कराने के निर्देश देने के बाद इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया की वेबसाइट के आंकड़ों के मुताबिक 2014 के आम चुनावों में 5 लोकसभा सीटों पर लोगों ने काफी ज्यादा नोटा का बटन दबाया था । खास तौर पर तमिलनाडु की नीलगिरी लोकसभा सीट, ओडिशा की नबरंगपुर सीट, कोरापुट सीट, छ्त्तीसगढ़ की बस्तर सीट इसमें शामिल थीं । चुनाव आयोग के आंकड़ों से पता चलता है कि नोटा का विकल्प चुनने वाले मतदाताओं की संख्या मध्य प्रदेश के 22 विधानसभा क्षेत्रों में जीत के अंतर से अधिक थे । यहां तक कि नोटा पर आम आदमी पार्टी (AAP) और समाजवादी पार्टी (SP) से ज्यादा वोट पड़े । 5, 42,295 मतदाताओं ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों पर नोटा का बटन दबाया जो कुल डाले गए वोटों का 1.4 प्रतिशत था । लेकिन यह संख्या 2013 के चुनावों की तुलना में कम है । 2013 में 6.43 लाख (1.9 प्रतिशत) मतदाताओं ने सभी उम्मीदवारों को खारिज कर नोटा का विकल्प चुना था । नोटा के आंकड़ों को देखकर राजनीतिक दलों को पता चलता है कि लोगों में उन्हें लेकर कितना विश्वास है । वह उनके उम्मीदों पर कहां खड़े हैं सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल सितंबर में चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवारों को खारिज करने के मतदाताओं के अधिकार को बरकरार रखते हुए कहा कि यह देश की राजनीतिक व्यवस्था को साफ करने में एक लंबा रास्ता तय करेगा ।
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