Game of...Power shift : कब तक चल पाएगी यह सरकार

कितने दिन तक चल पाएगी यह सरकार  

9 जून को जब दैवीय पुरुष ने प्रधानमंत्री की तीसरी बार शपथ ली तो उनके साथ 72 अन्य मंत्रियों ने भी शपथ ली जिसमें 30 कैबिनेट के मंत्री, 5 स्वतंत्र प्रभार के मंत्री तथा 26 राज्य मंत्री शामिल थे, इन मंत्रियों की संख्या पर अगर ध्यान दें तो यह बात स्पष्ट हो जाती है की देश की जनता को अब इस दैवीय पुरुष पर पहले जितना विश्वास नहीं रहा । क्योंकि देश की जनता यह चाहती है कि उसका प्रधानमंत्री एक सामान्य मनुष्य हो ना की ईश्वर , और शायद यही कारण है कि देश की जनता ने बीजेपी को बहुमत से बहुत दूर रखा तथा NDA को भी मात्र 293 सीटें ही दी । और देश की जनता जनार्दन ने दैवीय पुरुष को यह याद दिलाया कि वह एक मात्र मनुष्य है । और उस दैवीय पुरुष ने सत्ता में बने रहने के लिए वह सभी कार्य किए जो एक सामान्य मनुष्य करता, और शायद यही कारण है कि प्रधानमंत्री ने जब तीसरी बार शपथ ली तो उन्हें अपने पिछले दोनों कार्यकाल की अपेक्षा मंत्रियों की संख्या बढ़ानी पड़ी । 

26 मई 2014 को जब आज के दैवीय पुरुष प्रधान सेवक के रूप में शपथ ले रहे थे तो उनके साथ 45 मंत्रियों ने शपथ ली थी जिसमें 23 कैबिनेट के, 10 स्वतंत्र प्रभार के तथा 12 राज्य मंत्री थे , तथा यही दैवीय पुरुष जब 30 मई 2019 में विकास पुरुष के रूप में शपथ ले रहे थे तो उनके साथ 58 मंत्रियों ने शपथ ली जिसमें 25 कैबिनेट के, 9 स्वतंत्र प्रभार के तथा 24 राज्य मंत्री शामिल थे । कार्यकाल दर कार्यकाल इस युगपुरुष से लोगों का विश्वास कम होता गया और जैसे-जैसे विश्वास कम होता गया वैसे-वैसे मंत्रियों की संख्या बढ़ती गई और आज जब देश की जनता ने इस दैवीय पुरुष को पूरी तरीके से नकार दिया है । तो NDA गठबंधन की सरकार को चलाने के लिए पहली बार दैवीय पुरुष मजबूर नजर आए और इस मजबूरी में मंत्रिमंडल का विस्तार करना पड़ा । पर क्या मंत्रिमंडल का यह विस्तार NDA गठबंधन के इस सरकार को 5 साल तक बचाने में सक्षम होगी । या फिर ऐसी परिस्थितियां बन सकती हैं जिससे NDA के घटक दल सरकार का साथ ना दे और कार्यकाल पूरा होने से बहुत पहले ही NDA गठबंधन टूट जाए और दैवीय पुरुष एक बार फिर एक सामान्य मनुष्य हो जाए । आइए उन परिस्थितियों पर गौर करते हैं जिन परिस्थितियों ने इस दैवीय पुरुष को एक सामान्य मनुष्य बनने पर मजबूर कर दिया और आगे भी मजबूर करते रहने की प्रबल संभावना है ।

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चंद्रबाबू नायडू और नरेंद्र मोदी के राजनीतिक संबंध :

जिस चंद्रबाबू नायडू की पार्टी TDP के 16 सांसदों के भरोसे नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री की तीसरी बार शपथ लिए है उस चंद्रबाबू नायडू से नरेंद्र मोदी के संबंध कभी बेहतर नहीं रहे -

1: 2002 में जब गुजरात में दंगे हुए तब चंद्रबाबू नायडू NDA में शामिल थे गुजरात दंगों के बाद चंद्रबाबू नायडू पहले व्यक्ति थे जिन्होंने नरेंद्र मोदी से इस्तीफे की मांग की ।

2: अप्रैल 2002 में चंद्रबाबू नायडू की पार्टी TDP ने मोदी के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया ।

3: 2018 तक जब आंध्र प्रदेश को केन्द्र सरकार द्वारा विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिला तो चंद्रबाबू नायडू ने NDA छोड़ दी और केंद्र से अपने दो मंत्री भी हटा लिए, इसके साथ ही मोदी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए और अपने 16 सांसदों के साथ NDA छोड़ दी।

4: 2019 में प्रधानमंत्री मोदी का एक वीडियो वायरल होता है जिसमें वह चंद्रबाबू नायडू को अपने ससुर के पीठ में छुरा भोंकने वाला बताते हैं ।

चंद्रबाबू नायडू की राजनीतिक मजबूरियां उन्हें NDA में रोक कर रखी हुई है पर यह मजबूरियां क्या हमेशा रहेंगी, चंद्रबाबू नायडू स्पीकर पद की मांग पर अड़े हुए हैं इसके साथ ही उन्हें आंध्र प्रदेश राज्य को विशेष राज्य का दर्जा भी दिलाना है , क्या चंद्रबाबू नायडू की शर्तें मोदी पूरी कर पाएंगे, और शर्तें ना पूरी होने की स्थिति में कब तक चंद्रबाबू नायडू NDA में बने रहेंगे ?

नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के राजनीतिक संबंध : 

नीतीश कुमार NDA गठबंधन सरकार का इस समय तारणहार बने हुए हैं, पर यह भी जग जाहिर है कि नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी तथा अमित शाह के संबंध कभी भी सही नहीं रहे हैं और नीतीश कुमार के राजनीतिक छवि तो शुरू से ही दल बदलने की रही है ऐसी स्थिति में नीतीश कुमार का स्वहित कब तक नीतीश कुमार को NDA में रोक कर रख पाएगा यह भी देखने का विषय होगा नीतीश कुमार और NDA के संबंधों में तो बहुत बार टकराव हुआ है -

1: 2010 में जब बिहार विधानसभा चुनाव थे तो नीतीश कुमार ने मोदी को बिहार में प्रचार के लिए नहीं आने दिया ।

2: 2013 में मोदी को चुनाव अभियान की जब कमान मिली तो उससे नाराज होकर नीतीश कुमार ने NDA छोड़ दी, नीतीश कुमार को डर था कि मोदी के नेतृत्व में यदि वह NDA में रहे तो बिहार में मुस्लिम वोटर उनसे अलग हो जाएगा ।

3: 2014 में नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव अकेले लड़ते हैं और बिहार की 40 सीटों में उनकी पार्टी सिर्फ 2 सीटें जीत पाती हैं ।

4: 2016 में नीतीश कुमार RJD के साथ विधानसभा चुनाव लड़ते हैं, और 2 साल बाद फिर NDA में उनकी वापसी होती है ।

5: 2019 में फिर से नीतीश कुमार बीजेपी के साथ लोकसभा चुनाव लड़ते हैं और बिहार की 40 सीटों में 39 सीटें NDA जीतती है ।

6: और 2024 में फिर से NDA के साथ मिलकर नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव लड़े और उनकी पार्टी जदयू को 12 सीटें मिलती है और इस तरह 12 सीटों के साथ नीतीश कुमार NDA गठबंधन के तारणहार बन जाते हैं ।

नीतीश कुमार ने कब-कब पलटी मारी :

1: 1985 में नीतीश कुमार लालू यादव के साथ जनता दल से पहली बार विधायक बने ।

2: 1994 में नीतीश कुमार जॉर्ज फर्नांडिस के साथ मिलकर समता पार्टी बनायी ।

3: नवंबर 2005 से जून 2013 तक बीजेपी के सहयोग से बिहार के सीएम बने रहे ।

4: 2013 में बीजेपी से अलग हो गए ।

5: 2014 में NDA गठबंधन से अलग होकर लोकसभा चुनाव बिहार में अकेले लड़े इस चुनाव में उनकी पार्टी सिर्फ 2 सीटें ही जीत पायी ।

6: 2015 में विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार राजद और कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लेते हैं ।

7: 26 जुलाई 2017 को तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार का आरोप लगता है जिसके बाद यह मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देते हैं ।

8: 27 जुलाई 2017 को बीजेपी के साथ गठबंधन करके यह छठी बार बिहार के मुख्यमंत्री बनते हैं ।

9: नवंबर 2020 में फिर से एक बार बीजेपी के गठबंधन के साथ 7 वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बनते हैं ।

10: अगस्त 2022 में फिर से यह कहते हुए NDA गठबंधन छोड़ देते हैं कि "मर जाना कुबूल है पर उनके साथ जाना कबूल नहीं है" ।

11: अगस्त 2022 में फिर से राजद और कांग्रेस के गठबंधन के सहयोग से यह बिहार के मुख्यमंत्री बनते हैं ।

12: जनवरी 2024 में फिर से यह बीजेपी के साथ मिलकर बिहार में सरकार बनाते हैं ।

13: लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार INDIA गठबंधन को छोड़कर फिर से एक बार NDA गठबंधन में शामिल होते हैं और बिहार में उनकी पार्टी को 12 सीटें मिलती है और इन्हीं 12 सीटों के बल पर या NDA गठबंधन के तारणहार बन जाते हैं ।

नीतीश कुमार NDA में तब तक शामिल है जब तक केंद्र सरकार महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के विधानसभा चुनाव के साथ ही बिहार विधानसभा चुनाव कराने की घोषणा नहीं करती है । यदि केंद्र सरकार महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के साथ ही बिहार में भी विधानसभा चुनाव कराने की घोषणा नहीं करती है तो ऐसी स्थिति में नीतीश कुमार का NDA के साथ बने रहना कितना संभव है यह देखने का विषय है , इसके साथ ही नीतीश कुमार भी चंद्रबाबू नायडू की तर्ज पर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मांग भी कर चुके हैं ऐसे में देखना यह है कि बिना नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के सहयोग के यह सरकार और कितने दिन तक चल सकती हैं ?

नरेंद्र मोदी की तीसरी सरकार के सामने चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार की बाहरी समस्याओं के साथ कुछ आंतरिक समस्याएं भी हैं जैसे एकनाथ शिंदे की बगावत तथा अजीत पवार का नाराज होना और इसके साथ ही RSS के साथ मनमुटाव भी एक प्रमुख समस्या है, इन समस्याओं के बारे में अगले लेख में विस्तार से चर्चा किया जाएगा फिलहाल विषय यह है कि यदि चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार को NDA सरकार खुश नहीं कर पायी और किन्हीं कारणों से यदि यह दोनों सरकार से अपना समर्थन वापस लेते हैं तो क्या यह सरकार इनके बिना अपना कार्यकाल पूरा कर पाएगी और कितने दिन तक चल पाएगी यह सरकार ?

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