भारत की अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में

वर्ष 2019 - 20 की पहली तिमाही की जीडीपी दर 5% रही है
देश की आर्थिक स्थिति बद से बद्तर  होती नजर आ रही है राष्ट्रीय सांख्यिकी विभाग द्वारा जारी किए गए तिमाही आंकड़ों से पता चलता है की वर्ष 2019 - 20 की पहली तिमाही की जीडीपी दर 5% रही है यह आंकड़े देश की आर्थिक स्थिति के लिए  भयावह है, जीडीपी दर में पिछले 25 माह में सबसे अधिक गिरावट है ( 2013 के पहली  तिमाही में जीडीपी दर 4.3% रही ) राष्ट्रीय सांख्यिकी विभाग द्वारा जीडीपी के आकड़े आने के बाद मैंने टीवी चैनलों के माध्यम से स्थिति साफ करने के लिए बहुत दिनों बाद टीवी देखें मैंने बहुत सारे चैनलों को बदल बदल कर देखा पर किसी भी चैनल पर जीडीपी पर चर्चा नहीं हो रही थी हां कुछ एक चैनल पाकिस्तान की जीडीपी पर बात करते हुए नजर जरूर आए, फिर मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ और मैंने टीवी बंद कर दिया फिर मुझे याद आया कि इस समय भारत में तो गोदी मीडिया का दौर है जो शायद इस तरह की न्यूज़ नहीं दिखाना चाहती क्योंकि आज की गोदी मीडिया के पास इससे भी कई बड़े मुद्दे हैं जैसे हिंदू - मुस्लिम, पाकिस्तान, 370 आदि ।
मौजूदा सरकार लगभग सभी प्रकार के सरकारी उपक्रमों और निजी उपक्रमों पर एकछत्र आधिपत्य स्थापित कर चुका है पिछले 5 वर्षों में किसी विभाग संस्था या न्यूज़ चैनलों द्वारा किसी भी मुद्दे पर साफ आंकड़े नहीं दिए गए बजट तक में आंकड़ों की कमी रही राफेल की कीमतों को भी भौतिक विज्ञान के साइनओं द्वारा समझाने की कोशिश किया गया । सरकार सभी आंकड़ों को अपने हिसाब से प्रस्तुत करके  जनता को गुमराह कर रही है । आज देश का हर वर्ग अपनी समस्याओं से जूझ रहा है छात्र रोजगार के लिए सड़कों पर आंदोलन कर रहा है , बाजार में मांग नहीं है बड़ी कंपनियां उत्पादन नहीं कर पा रही है बंद होने की कगार पर हैं तथा छोटी कंपनियां कर्ज में डूबती जा रही है किसान कर्ज में डूबता जा रहा है जीडीपी लगातार नीचे गिरती नजर आ रही है लाखों लोगों से उनकी नौकरियां छीन ली गई है और हमारी सरकार कश्मीर और धारा 370 जैसे मुद्दों पर अपना पीठ थपथपा रही है ।
भारत की अर्थव्यवस्था का आकार 35.85 लाख करोड़ है।  जानकार कह रहे थे कि पहली तिमाही की जीडीपी 5.8 प्रतिशत रहेगी. लेकिन इससे भी काफी कम जीडीपी दर्ज हुई है. 5 प्रतिशत की जीडीपी इस बात की पुष्टि करती है कि भारत की अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ चुकी है।  यह गिरावट अचानक नहीं आई है. 2018-19 की पहली तिमाही के बाद से ही इसकी शुरुआत हो चुकी थी. डेढ़ साल हो गए मगर हालात में सुधार नहीं हो सका है. अप्रैल-जून की तिमाही - 8.0%, जुलाई-सितंबर की तिमाही- 7.0%, अक्तूबर-दिसंबर की तिमाही-6.6%, जनवरी-मार्च की तिमाही 5.8%. और अब मार्च से जून की जीडीपी 5.8 से घट कर 5 प्रतिशत पर आ गई है. कृषि, मत्स्य पालन, खनन, मैन्यूफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन, रीयल इस्टेट की हालत ख़राब है. कृषि क्षेत्र में विकास दर 2 प्रतिशत है. 2018-19 की पहली तिमाही में 5.1 प्रतिशत थी जो अब 2 प्रतिशत आ गई है. हमें पता भी नहीं है कि गांवों में क्या हालत है लेकिन बिजनेस अखबारों में ग्रामीण क्षेत्रों से मांग में भारी कमी की खबरें दबी ज़ुबान में आ रही थीं। 
मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है. इसी सेक्टर के लिए मेक इन इंडिया लाया गया था. मार्च की तिमाही में 3.1 प्रतिशत ग्रोथ रेट था जो अब 1 प्रतिशत से भी नीचे आ गया है. मैन्यूफैक्चरिंग में मात्र 0.6 प्रतिशत की विकास दर रही है. 2018-19 की पहली तिमाही में 12.1 प्रतिशत विकास दर थी. डेढ़ साल में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में 11.5 प्रतिशत की गिरावट हुई है। 
यह वो सेक्टर हैं जहां संगठित और असगंठित रोज़गार अधिक होता है. अगर यहां डेढ़ साल से गिरावट आ रही है तो आप समझ सकते हैं क्यों न्यूज़ चैनलों पर छापों और नेशनल सिलेबस की खबरें बढ़ गई हैं. न्यूज़ चैनलों की रिकॉर्डिंग निकाल कर देखिए, भारत की अर्थव्यवस्था में गिरावट की आहट तक सुनाई नहीं देगी. तरह तरह के मुद्दों पर डिबेट पैदा किए जा रहे हैं जैसे दि‍वाली के समय नकली मावे की मिठाई बनती है उसी तरह चैनलों पर नकली मुद्दों पर डिबेट हो रहा होता है. ऐसा कोई सेक्टर नहीं है जो गहरे संकट से नहीं गुज़र रहा है. हम नहीं जानते हैं कि बेरोज़गारों पर क्या गुज़र रही है, जिनकी नौकरियां जा रही हैं उन पर क्या गुज़र रही है, जो व्यापारी कर्ज़ के बोझ से बर्बाद हो रहे हैं उनकी कहानी कहीं नहीं है. कोई भी बड़ा सेक्टर नहीं है जो डबल डिजिट में ग्रोथ कर रहा हो. ट्रेड, होटल, संचार के सेक्टर में ही 7 प्रतिशत की दर से विकास हुआ है।  इलेक्ट्रिसिटी सेक्टर में सबसे अधिक विकास दर्ज हुआ है, 8.6 प्रतिशत. उसके बाद कंस्ट्रक्शन सेक्टर में भी गिरावट है. सीमेंट, स्टील में गिरावट है. माइनिंग सेक्टर का भी बुरा हाल है। 
नवंबर 2016 में नोटबंदी हुई थी. तब कहा गया था कि आने वाले समय में अच्छा होगा. फिर 1 जुलाई 2017 को जीएसटी लागू हुई, कहा गया कि आने वाले समय में अच्छा होगा. लेकिन अभी तक वो समय नहीं आया है. सारे बड़े सेक्टर रेंगते नज़र आ रहे थे. हाल ही में पूजा मेहरा ने द हिन्दू में विश्लेषण किया था कि नोटबंदी के बाद से कंपनियों का कुल निवेश 60 प्रतिशत घट गया. पहले 10 लाख करोड़ से अधिक निवेश हो रहा था जो 2017-18 में 4 लाख 25 हज़ार करोड़ पर आ गया. इतनी कमी आ गई. फिर भी नोटबंदी के फायदे गिनाए जाते रहे. रिज़र्व बैंक की अभी अभी रिपोर्ट आई है. दावा किया जाता है कि कैशलेश इकोनमी की तरफ बढ़ रहे हैं मगर डेटा आता है कि कैश का चलन बढ़ गया है।  नगदी हस्तातंरण में 17 प्रतिशत की वृद्धि‍ हो गई है। 
बैंक फ्रॉड की राशि पिछले साल की तुलना में 73.8 प्रतिशत अधिक हो गई है. 2017-18 में 41,167 करोड़ का फ्रॉड हुआ था. 2018-19 में 71,542 करोड़ का फ्रॉड हुआ है. केस की संख्या के मामले में 15 प्रतिशत की वृद्धि है।  फ्रॉड के 6801 मामले दर्ज हुए हैं. 90 प्रतिशत राशि सरकारी बैंकों की है। 

डिजिटल इंडिया के तमाशे के दौर में बैंक नोट का चलन भी 17 प्रतिशत बढ़ा है।  वित्त वर्ष 18 में 18 लाख करोड़ नोट का चलन था तो वित्त वर्ष 19 में 21 लाख करोड़ से अधिक हो गया है. ये रिज़र्व बैंक का आंकड़ा है।  20 रुपये के जाली नोटों में 87 प्रतिशत की वृद्धि है और 50 रुपये के जाली नोटों में 57 प्रतिशत की. 100 रुपये के जाली नोटों के मामले में गिरावट देखी गई है। 
नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी(NBFC) की सालाना रिपोर्ट कहती है कि कर्ज़ लेने वाली कंपनियों की संख्या कम हो गई है. 20 प्रतिशत की गिरावट है । 71 हज़ार करोड़ से अधिक के बैंक फ्रॉड दर्ज हुए हैं जो पिछले साल की तुलना मे 74 प्रतिशत अधिक है। 
पांच साल काफी होता है किसी सरकार की आर्थिक नीतियों के मूल्याकंन करने का. आप किसी भी सेक्टर में देख लीजिए. हालत चरमरा गई है. ठीक से रिपोर्टिंग हो जाए तो बोगसबाज़ी की सारी खबरें सामने आ जाएंगी। 
यह ज़रूरत है कि मोदी सरकार राजनीतिक रूप से भयंकर सफल सरकार है इसलिए भी आप इस सरकार को हर वक्त राजनीति करते देखेंगे. यह कहते भी सुनेंगे कि वह राजनीति नहीं करती है. कश्मीर उसके लिए ढाल बन गया है. इस तरह के विश्लेषण लिखते लिखते साढ़े पांच साल गुज़र गए ।

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