एन आर सी और सी ए ए का चक्रव्यूह

एन आर सी और सी ए ए का चक्रव्यूह
पिछले कुछ महीनों से सरकार तथा विपक्ष के द्वारा जो माहौल देश में तैयार किया गया है उसे देखने और समझने के बाद कुछ भी लिखने का मन नहीं था देश की स्थिति इतनी शोचनीय और भयावह हो गई है इस पर अब कुछ भी लिखने के लिए शब्द ही नहीं मिलते । लोकतंत्र की सबसे खूबसूरत और अच्छी चीज अभिव्यक्ति की आजादी को समाप्त कर सरकार ने लोकतंत्र की हत्या तो बहुत पहले कर दी थी और विपक्ष भी अब विपक्ष की भूमिका में नहीं रहा । आज सरकार के विरोध में बोलने का अर्थ राष्ट्रद्रोह बन चुका है इस लोकतंत्र को बचाने के लिए आज कुछ एक लोग अगर कुछ बोल रहे हैं या कर रहे हैं तो उन्हें राष्ट्र विरोधी समझा जा रहा है यह स्थिति देश में कब बनी कैसे बनी और किन के द्वारा बनाए गए यह तो नहीं पता पर सच यही है कि आज अगर आप लोकतंत्र की बात करते हैं सरकार के खिलाफ बात करते हैं तो आप राष्ट्र विरोधी हैं । देश के लिए इससे भी भयावह स्थिति तो वह है कि यहां के बुद्धिजीवी वर्ग आज सबसे अधिक गुमराह हैं क्योंकि वह सब समझ रहा है इसके बावजूद भी वह मौन है । इनका यू मौन हो जाना देश के लिए तथा आने वाली पीढ़ियों के लिए कितना कष्टदायक होने वाला है यह कल्पना से भी परे हैं ऐसी स्थिति में, देश के ऐसे हालात में मेरी अंतरात्मा मुझे मौन रहने की इजाजत नहीं देती ।
इस समय देश के विभिन्न हिस्सों में मुख्यतः दिल्ली  में जो कुछ भी हो रहा है उसकी बुनियाद तो बहुत बरसों पहले 1951 की जनगणना के बाद भारतीय राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के बनने के बाद ही पड़ गया था । भारतीय राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर ( NATIONAL REGISTER OF CITIZEN FOR ASSAM , NRC ) इसे 1951 की जनगणना के दौरान वर्णित सभी व्यक्तियों के विवरणों के आधार पर तैयार किया गया जो लोग असम में बांग्लादेश बनने से पहले अर्थात ( 25 मार्च 1971 ) आए हैं केवल उन्हें ही भारत के नागरिक माना जाएगा । इसके अंतर्गत 1951 में असम में 80 लाख नागरिकों के नाम पंजीकृत किए गए थे । माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 31 दिसंबर 2017 को असम में इसका पहला ड्राफ्ट प्रकाशित किया गया, जिसके बाद कानूनी तौर पर भारत के नागरिक के रूप में पहचान प्राप्त करने हेतु असम में लगभग 3.29 करोड़ आवेदन प्रस्तुत किए गए जिसमें कुल 1.9 करोड़ लोगों के नाम को ही शामिल किया गया तथा 1.39 करोड़ लोगों के आवेदनों को विभिन्न स्तरों पर जांच के लिए रखा गया जिसमें 15 लाख लोग हिंदू थे ।
भारतीय जनता पार्टी की यह कूटनीतिक चाल भारतीय जनता पार्टी के लिए ही गले की हड्डी बन गई क्योंकि इस ड्राफ्ट के अनुसार इसमें 15 लाख हिंदू भी शामिल थे जिन पर बीजेपी शुरू से ही राजनीति करती आई है अब जरूरी यह हो गया कि किस तरह इन्हें नागरिकता दी जाए तब सरकार ने एक भ्रष्ट राजनीति की शुरुआत की और संसद में नागरिकता संशोधन बिल 2019 लाया गया । 
नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 ( CITIZENSHIP AMENDMENT ACT. 2019 ) के अंतर्गत 1955 के नागरिकता कानून को संशोधित किया गया तथा यह व्यवस्था बनाया गया कि 31 दिसंबर 2014 से पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन, पारसी और ईसाई को भारत की नागरिकता प्रदान की जाएगी इस विधेयक में भारतीय नागरिकता प्रदान करने के लिए आवश्यक 10 वर्ष तक भारत में रहने की शर्त में भी संशोधन किया गया अब यह अवधि 5 वर्ष कर दी गई है ।
देश की प्रमुख और बुनियादी समस्या बेरोजगारी, आर्थिक मंदी और शिक्षा जैसे मुद्दों को छोड़कर सरकार को एनआरसी और सीएए की जरूरत क्यों पड़ी । सरकार यह जानती है कि बेरोजगारी पिछले 45 वर्षों में सबसे अधिक दर्ज की गई है आर्थिक मंदी अनियंत्रित हो चुकी है शिक्षा व्यवस्था फेल हो चुका है तथा तंत्र सही से काम नहीं कर पा रहा है ऐसे में सरकार आने वाले विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनाव तथा राष्ट्रीय चुनाव में बुरी तरह से घिरने वाली है इन सब का तोड़ निकालने के लिए सरकार ने अपनी पूर्व की नीतियां हिंदू - मुस्लिम, पाकिस्तान जैसे मुद्दों को बढ़ावा दे कर देश की जनता को गुमराह करने में लगी हुई है ताकि देश की जनता आने वाले चुनाव में सरकार से बेरोजगारी, आर्थिक मंदी, शिक्षा जैसी बुनियादी मुद्दों पर कोई  सरकार से सवाल ना कर सके ।
अब सरकार की रणनीति यह है कि इस एनआरसी को पूरे देश में लागू किया जाए जिसके लिए देश में व्यापक पैमाने पर विरोध हो रहा है जबकि सरकार का कहना है कि किसी भी हाल में एनआरसी को पूरे देश में लागू किया जाएगा अगर ऐसा होता है तो क्या हो सकता है देश की जनता से उनके यहां रहने के दस्तावेज सरकार द्वारा मांगे जाएंगे और उसमें किसी भी प्रकार कि गलती होने पर उन्हें एनआरसी में शामिल नहीं किया जाएगा जो कि काफी हद तक संभव भी है क्योंकि सरकारी कागजों में नामों की गलतियां और ऐसी छोटी मोटी गलतियां तो होती ही हैं ऐसे में व्यक्ति को एनआरसी में शामिल नहीं किया जाएगा और उसे देश का नागरिक नहीं माना जाएगा । और ऐसा होने से देश के गरीब, मध्यम वर्गीय तथा वे लोग जिनके पास आवश्यक दस्तावेज नहीं है और कुछ संपत्ति है देश का नागरिक ना होने के कारण संपत्ति पर भी उनका कोई अधिकार नहीं रह जाएगा । क्योंकि आपकी संपत्ति राज्य की संपत्ति होती है अगर आप राज्य के नागरिक ही नहीं होंगे तो राज्य की संपत्ति पर आपका कोई अधिकार नहीं रह जाएगा । एक कहावत है कि गेहूं के साथ घुन भी पिसता है पर सरकार इस कानून के द्वारा इस कहावत को ठीक उल्टा कर रही है क्योंकि इस कानून के द्वारा घून के साथ गेहूं को पिसा जाएगा सरकार ने इस कानून के पक्ष  में तर्क दिया कि इससे देश में घुसपैठियों को चिन्हित किया जा सकता है। पर सच यह है कि इस कानून के द्वारा देश की उस जनता को उसके नागरिकता से वंचित कर दिया जाएगा जिनके दस्तावेजों में किसी भी प्रकार की कमी पाई जाएगी ।
सरकार देश की आधारभूत समस्याएं बिजली, पानी, रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि में बुरी तरह से नाकामयाब रही है अब सरकार अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए देश के सामने एक नई समस्या खड़ी कर रही है तथा इसे हिंदू मुस्लिम का रूप दे रही है जिससे देश की जनता का ध्यान इस मौलिक आवश्यकता से हटकर हिंदू मुस्लिम और पाकिस्तान जैसे बेवजह के मुद्दों में उलझा रहे हैं और देश की जनता सरकार से इन मुद्दों पर कोई सवाल ही ना कर सके । यह ठीक उसी प्रकार है जैसे एक बच्चे को भूख लगने पर वह अपने पापा से बिस्कुट मांगता है और उसके पापा उस बच्चे को उठाकर किसी अलमारी पर रख देते हैं अब उस बच्चे की प्राथमिक समस्या उस अलमारी से उतरना होगा ना के बिस्कुट सरकार भी हमारे साथ कुछ ऐसा ही कर रही है इसे समझना आपकी अपनी जिम्मेदारी है आप अपने बच्चों को कैसा भविष्य देना चाहते हैं यह आप पर निर्भर करता है । आपको यह समझना होगा कि आपकी आने वाली पीढ़ी जब आपसे यह सवाल करेगी कि जब देश में ऐसा हो रहा था तब आप क्या कर रहे थे उस वक्त आप क्या जवाब देंगे यह भी आप पर ही निर्भर करता है कि आपको उसकी आंखों में आंखें डाल कर जवाब देना है या फिर आंखें छुपा लेनी हैं ।

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