उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 का सेमीफाइनल

उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव के तारीख की घोषणा कर दी गई है । उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 का सेमीफाइनल साबित होगा । शायद यही वजह है कि बहुजन समाज पार्टी जिन्होंने प्रदेश में कभी भी उपचुनाव में हिस्सा नहीं लिया इस बार के उपचुनाव में सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर रही है । उत्तर प्रदेश में 8 सीटों पर उपचुनाव होने थे पर 3 नवंबर को होने वाले उपचुनाव में रामपुर के स्वार सीट पर उपचुनाव होने की घोषणा नहीं की गई है, अब सिर्फ जौनपुर के मल्हनी, उन्नाव के बांगरमऊ, देवरिया के देवरिया सदर, फिरोजाबाद के टूंडला, बुलंदशहर के बुलंदशहर सदर, कानपुर के घाटमपुर, तथा अमरोहा के नौगांव सादात सीट पर ही चुनाव होंगे । इन 8 सीटों में मल्हनी और सवार को छोड़कर बाकी सभी 6 सीटों पर भाजपा का कब्जा था । भाजपा की लगातार घटती लोकप्रियता जन विरोधी कानून तथा बेरोजगारी जैसे मुद्दों ने मोदी लहर को समाप्त कर दिया है अब इन परिस्थितियों में भाजपा के लिए इन  सीटों पर बने रहना सबसे बड़ी चुनौती साबित होने वाली है । जौनपुर की मल्हनी सीट से भाजपा का कोई उम्मीदवार कभी नहीं जीता वही रामपुर के स्वार सीट पर परिसीमन के बाद भाजपा कभी नहीं जीते तथा उन्नाव के बांगरमऊ और कानपुर के घाटमपुर सीट पर 2017 से पहले भाजपा कभी नहीं जीती । बांगरमऊ से कुलदीप सिंह सेंगर तथा घाटमपुर से कमल रानी वरुण ने पहली बार 2017 में भाजपा का खाता खोला शायद यहां अब तक मोदी फैक्टर काम कर रहा था। इस उपचुनाव में भाजपा को अपनी साख बचाने के लिए जितनी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा उतना ही सपा, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस तथा अन्य पार्टियों को भी करना होगा क्योंकि सपा और बसपा के लिए तो यह उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 का सेमीफाइनल साबित होने वाला है इस चुनाव के जरिए यह 2022 में सत्ता हासिल करने का पूरा प्रयास करेंगे यही कारण है कि इस उपचुनाव में सभी पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है ।
जौनपुर, मल्हनी विधानसभा क्षेत्र 367 :- 2012 से पहले यह क्षेत्र रारी विधानसभा क्षेत्र 239 के अंतर्गत आता था इस सीट पर दो बार 2002 और 2007 में जनता दल यूनाइटेड से धनंजय सिंह विधायक रहे हैं 2012 में पूर्वांचल के मिनी सीएम कहे जाने वाले पारसनाथ यादव ने धनंजय की पत्नी डॉक्टर जागृति सिंह को चुनाव में हराकर यह सीट समाजवादी के पाले में कर दिया 2017 के विधानसभा चुनाव में भी पारसनाथ यादव धनंजय सिंह को हराकर दोबारा समाजवादी को जीत दिलाई । पारसनाथ यादव के निधन के बाद यह सीट खाली हो गई थी इस पर उपचुनाव होना है । इस विधानसभा में लगभग 80 हजार यादव, 70 हजार दलित, 50 हजार छत्रिय तथा 40 हजार मुस्लिम वोटर है जिसमें यादव और दलित निर्णायक भूमिका निभाते हैं । धनंजय सिंह बाहुबली इस बार उपचुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार हो सकते हैं इससे पहले सतीश सिंह 2017 में बीजेपी के उम्मीदवार रहे जो कि 2012 में बीएसपी के उम्मीदवार रहे थे, इसके अलावा आर. एस. एस. समर्थित प्रमोद यादव भी चुनाव लड़ सकते हैं, जिससे धनंजय सिंह कि मुश्किलें बढ़ सकती हैं । बरसठी के ब्लॉक प्रमुख मनोज सिंह तथा पाणिनी सिंह भी उम्मीदवार हो सकते हैं । धनंजय सिंह के भाजपा में शामिल होने के कारण भाजपा की स्थिति यहां बेहतर हुई  है तथा यहां का उपचुनाव बीजेपी, सपा और बीएसपी के बीच त्रिकोणीय होगा ।
उन्नाव, बांगरमऊ विधानसभा क्षेत्र 162 :- मुस्लिम और यादव बहुल इस विधानसभा क्षेत्र से भी 2017 से पहले भाजपा ने कभी भी इस सीट से जीत दर्ज नहीं की थी 2017 में कुलदीप सिंह सेंगर ने सपा के बदलू खान को हराकर पहली बार यहां पर बीजेपी का खाता खोला। 2017 के विधानसभा चुनाव में दलित और पिछड़ा वर्ग बीजेपी के साथ था जोकि मुख्यता इससे पहले इन्हें बीएसपी वोटर माना जाता रहा है । 1982 से पहले विधानसभा चुनाव में बांगरमऊ सीट को सुरक्षित रखा गया था इस सीट से दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के ससुर गोपीनाथ दीक्षित 1969 1980 1985 तथा 1991 में जीत दर्ज की थी ।20 दिसंबर 2019 को दुष्कर्म के आरोप में कुलदीप सिंह सेंगर को आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने के बाद से यह सीट खाली हो गई अब इस पर उपचुनाव होना है, इस उपचुनाव में कुलदीप सिंह सेंगर की पत्नी संगीता सिंगर बीजेपी से उम्मीदवार हो सकती हैं । सपा से यहां पूर्व विधायक बदलू खान, पूर्व विधायक उदय राज यादव, पूर्व विधायक तथा राज्य मंत्री रहे सुधीर रावत तथा पूर्व एमएलसी अरुण कुमार शुक्ला उर्फ अन्ना महाराज लाइन में है इस सीट से कांग्रेस आरती बाजपेई को अपना उम्मीदवार बना सकती है तथा इसके अतिरिक्त अरुण सिंह नवाबगंज के ब्लाक प्रमुख ममता सिंह शशि शेखर सिंह ज्ञानेंद्र सिंह भी उम्मीदवार हो सकते हैं । राम मंदिर आंदोलन के बाद कांग्रेस की स्थिति इस सीट से बद से बदतर होती चली गई तथा अब इस सीट पर सपा तथा बसपा का कब्जा रहा है इस उपचुनाव में सपा और बसपा ही मुख्य भूमिका निभाएंगे।
देवरिया, देवरिया सदर विधानसभा क्षेत्र 337 :-  पिछड़ी जाति बाहुल्य इस सीट पर पिछले दो बार से बीजेपी का कब्जा रहा है 2017 के विधानसभा चुनाव में जन्मेजय सिंह ने सपा के जेपी जयसवाल को हराकर यह सीट बीजेपी को दिलाई तथा इन्होंने ही 2012 के चुनाव में बीएसपी के उम्मीदवार प्रमोद सिंह को हराकर यह सीट भाजपा को दिलाई थी । इस सीट से दीनानाथ कुशवाहा दो बार 2007 में सपा तथा 2002 में एनएलपी से विधायक रहे हैं। जन्मेजय सिंह के निधन के बाद यह सीट खाली हो गई थी अब इस पर उपचुनाव होना है । उपचुनाव में इस सीट से बीजेपी उम्मीदवार पूर्व सांसद प्रकाश मणि त्रिपाठी के बेटे शशांक मणि त्रिपाठी, संजय सिंह संखवार, अल्का सिंह तथा प्रमोद सिंह हो सकते हैं । समाजवादी जेपी जयसवाल पर दांव खेल सकती हैं । तथा जिला पंचायत अध्यक्ष रामप्रवेश यादव भी उम्मीदवार हो सकते हैं। इस सीट पर सपा और भाजपा मुख्य भूमिका में नजर आ रहे हैं ।
रामपुर, स्वार विधानसभा क्षेत्र 34 :- परिसीमन के बाद कभी भी भाजपा की वापसी इस सीट पर नहीं हुई । परिसीमन से पहले यह क्षेत्र स्वार टांडा विधानसभा 20 के अंतर्गत था शिव बहादुर सक्सेना इस सीट से 4 बार 1989, 1991, 1993 और 1996 में भाजपा से विधायक रहे हैं । 2017 के विधानसभा चुनाव में आजम खान के बेटे मोहम्मद अब्दुल्लाह आजम खान ने  भाजपा उम्मीदवार लक्ष्मी सैनी को हराकर यह सीट सपा को दिलाई । इस सीट से काजिम अली खान उर्फ नवेद मियां लगातार तीन बार 2002 में कांग्रेस से (27 फरवरी 2003 को बीएसपी में फिर 6 सितंबर 2003 को सपा में शामिल हुए तथा 2007 में सपा के उम्मीदवार रहे), 2007 में सपा से, तथा 2012 में कांग्रेस से विधायक रहे । 2017 के विधानसभा चुनाव में ये तीसरे स्थान पर रहे इन्होंने ही अब्दुल्लाह आजम के ऊपर आयु से संबंधित केस किया था जिस के निर्णय के बाद से यह सीट खाली हो गया है । जिसके बाद यहां उपचुनाव होना था सभी पार्टियों ने यहां पर अपने उम्मीदवार घोषित भी कर दिए थे लेकिन यहां उपचुनाव की घोषणा नहीं हुई  । आकाश सक्सेना जिन्होंने आजम खां पर केस किया है वह यहां से भाजपा के उम्मीदवार हो सकते थे तथा बीएसपी ने शफीफ़ अंसारी को अपना उम्मीदवार घोषित किया था । इस सीट पर उपचुनाव में सपा और भाजपा मुख्य भूमिका निभाते हुए नजर आ रहे थे कांग्रेस से नवाब काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां के बेटे हाजमा मियां उम्मीदवार हो सकते थे ।
फिरोजाबाद, टूंडला विधानसभा क्षेत्र 95 :- राज बब्बर मूल रूप से टूंडला के रहने वाले हैं 2009 के फिरोजाबाद लोकसभा के उपचुनाव में डिंपल यादव के खिलाफ चुनाव लड़े तथा जीत हासिल की थी । इस क्षेत्र में सपा के 30 हजार से ज्यादा कैडर वोट है, इस सीट पर निषाद, जाट, मुस्लिम और ठाकुर हमेशा से निर्णायक साबित होते रहे हैं । इस सीट पर आखिरी बार 1996 में समता - भाजपा गठबंधन के प्रत्याशी रघुवर दयाल वर्मा विधायक बने थे, उसके बाद से इस सीट पर 2017 से पहले भाजपा का कोई उम्मीदवार नहीं जीता । 2012 और 2007 के विधानसभा चुनाव में यह सीट बीएसपी के पाले में रही । 2017 के विधानसभा चुनाव में सत्यपाल सिंह बघेल ने बीएसपी उम्मीदवार राकेश बाबू को हराकर यह सीट बीएसपी से छीन कर भाजपा को दे दी । सत्यपाल सिंह बघेल ने एक लाख 18 हजार 584 वोटों के साथ एक बड़ी जीत हासिल की यही कारण है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में इन्हें आगरा लोकसभा सीट से बीजेपी उम्मीदवार बनाया गया वहां पर भी उन्होंने जीत दर्ज की जिसके कारण अब टूंडला सीट खाली है यहां पर उपचुनाव होने हैं । इस सीट से 18 भाजपा के उम्मीदवारों ने आवेदन किया है जिसमें मुख्यतः एसपी सिंह बघेल की पुत्री डॉक्टर सलोनी है इसके अतिरिक्त नीलम दिवाकर, पूर्व विधायक मोहन देव संखवार, पूर्व विधायक शिव सिंह चक, आगरा के पूर्व मेयर अंजुला सिंह माहौर है । इस सीट से बीएसपी ने संजीव कुमार चक तथा सपा ने महाराज सिंह धनगर को उम्मीदवार बनाया है । यहां बीएसपी तथा बीजेपी के बीच कड़ा मुकाबला है ।
बुलंदशहर, बुलंदशहर सदर विधानसभा क्षेत्र 65 :- इस विधानसभा में लगभग 1लाख मुस्लिम, 40 हजार जाटव, 35 हजार लोध, 23 हजार जाट, 17 हजार ब्राम्हण तथा 18 हजार वैश्य वोटर है । इसमें मुस्लिम तथा जाट हमेशा निर्णायक भूमिका में रहे हैं, पर 2017 विधानसभा के चुनाव में वीरेंद्र सिंह सिरोही बीजेपी के जाट उम्मीदवार थे तथा इन्होंने बीएसपी उम्मीदवार मोहम्मद अलीम खान को हराकर बीजेपी को बड़ी जीत दिलाई । विरेंद्र सिंह सिरोही के निधन के बाद यह सीट खाली हो गई थी । अब इस पर उपचुनाव होना है । इस उपचुनाव में विरेंद्र सिंह सिरोही के पुत्र दिग्विजय तथा विनय सिरोही प्रमुख दावेदार है इसके अलावा रविंद्र राजौरा, प्रताप चौधरी, सुंदर पाल तेवतिया, जगदीश दहिया, प्रोफेसर राजीव सिरोही, साहब सिंह सिरोही भी लाइन में है । बीएसपी ने पूर्व विधायक हाजी अलीम के भाई हाजी यूनुस को उम्मीदवार बनाया है । तथा आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद रावण ने भी अपनी पार्टी का पहला उम्मीदवार हाजी यामीन को यहां से  मैदान में उतारा है । इस सीट से अलीम खान दो बार 2007 तथा 2012 में बीएसपी से विधायक रहे हैं । इस उपचुनाव से बीएसपी  वापसी चाहेगी जिसके लिए इसका मुख्य प्रतिद्वंदी भाजपा उम्मीदवार होगा ।
कानपुर, घाटमपुर विधानसभा क्षेत्र 218 :- 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले इस सीट से भी बीजेपी का कोई भी उम्मीदवार कभी नहीं जीता 2017 के विधानसभा चुनाव में कमल रानी वरुण ने बीएसपी के उम्मीदवार सरोज कुरील को हराकर यहां पर बीजेपी का खाता खोला । 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा के इंद्रजीत कोरी, 2007 के विधानसभा चुनाव में राम प्रकाश कुशवाहा बीएसपी से तथा 2002 के विधानसभा चुनाव में राकेश सचान सपा से विधायक रहे हैं । कमल रानी वरुण के निधन के बाद से यह सीट खाली हो गई थी अब इस पर उपचुनाव होने हैं इस सीट के लिए बीजेपी के 20 दावेदारों ने आवेदन किया है जिसमें से प्रमुखत: कमल रानी वरुण की पुत्री स्वनिल है । इस सीट से बीएसपी ने कुलदीप शंखवार को अपना उम्मीदवार बनाया है । तथा सपा से पूर्व विधायक इंद्रजीत कोरी, रघुनाथ संखवार, जिला पंचायत सदस्य सैलू सोनकर तथा पूर्व जिला पंचायत सदस्य सोमवती संखवार उम्मीदवार हो सकती है । इस सीट पर सपा और बसपा दोनों वापसी चाहेंगे । 
अमरोहा, नौगांव सादात विधानसभा क्षेत्र 40 :- मुस्लिम बहुल इस विधानसभा क्षेत्र से बीएसपी का कोई भी उम्मीदवार कभी नहीं जीता 2008 से पहले यह क्षेत्र अमरोहा विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता था । 2017 के विधानसभा चुनाव में चेतन चौहान ने सपा के उम्मीदवार जावेद अब्बास को हराकर यह सीट बीजेपी की झोली में डाल दी । चेतन चौहान के निधन के बाद यह सीट खाली हो गई थी अब यहां पर उपचुनाव होना है । चेतन चौहान की पत्नी संगीता चौहान यहां से बीजेपी के प्रमुख उम्मीदवार हो सकती हैं इसके अतिरिक्त डॉ हरिओम ढिल्लों, राहुल चौहान तथा पूर्व सांसद देवेंद्र नागपाल भी लाइन में है, इस सीट से सपा ने मदन चौहान तथा बीएसपी ने फुरकान अहमद को अपना उम्मीदवार बनाया है । विधानसभा के इस उपचुनाव में यह मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है ।
10 नवंबर को आने वाले इस उपचुनाव के नतीजे विधानसभा चुनाव 2022 की राह तय करेंगे । इस उपचुनाव के जरिए सपा और बसपा दोनों अपने अपने स्तर पर सत्ता में वापसी करने का अथक प्रयास करेंगे । भाजपा की पूर्व नीतियों ने शायद उनकी राह और आसान कर दी है यह उपचुनाव भाजपा सरकार के लिए अंत की शुरुआत साबित हो सकती है ।

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