जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव 2024: एक महत्वपूर्ण मोड़

 जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव 2024: एक महत्वपूर्ण मोड़



परिचय

जम्मू और कश्मीर का राजनीतिक और चुनावी परिदृश्य भारत के लिए हमेशा से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 के निरस्त होने और राज्य के पुनर्गठन के बाद से जम्मू-कश्मीर के चुनावी इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ा है। अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद, जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश बन गया, और इसकी विशेष राज्य की स्थिति समाप्त हो गई। इस घटना ने न केवल राज्य की राजनीतिक संरचना में बदलाव किया बल्कि यहां के चुनावी परिदृश्य को भी गहराई से प्रभावित किया। जम्मू-कश्मीर में अब 2024 के विधानसभा चुनाव होने हैं, जो इस क्षेत्र और पूरे देश के लिए कई मायनों में ऐतिहासिक और निर्णायक साबित हो सकते हैं।

जम्मू-कश्मीर में चुनावी प्रक्रिया का इतिहास

जम्मू-कश्मीर का राजनीतिक इतिहास कई उतार-चढ़ावों से भरा रहा है। 1951 में यहां पहली बार संविधान सभा के लिए चुनाव हुए, जिसका उद्देश्य राज्य के संविधान का निर्माण करना था। इसके बाद 1957 में पहली बार राज्य विधानसभा के चुनाव हुए। लेकिन तब से लेकर आज तक, यहां की चुनावी प्रक्रिया राजनीतिक अस्थिरता, हिंसा, और अलगाववादी आंदोलनों से प्रभावित रही है।

1987 के विधानसभा चुनाव, जिसे व्यापक तौर पर विवादास्पद माना गया, ने घाटी में राजनीतिक अस्थिरता को और गहरा कर दिया। इन चुनावों के बाद से जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन को नई गति मिली और आतंकवाद की शुरुआत हुई। 1996 में हुए विधानसभा चुनावों के बाद राज्य में चुनावी प्रक्रिया की स्थिरता आंशिक रूप से बहाल हुई, लेकिन सुरक्षा और राजनीतिक स्थिति की अस्थिरता जारी रही।

अनुच्छेद 370 का निरस्त होना और उसका प्रभाव

5 अगस्त 2019 को भारत सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 और 35A को निरस्त करने का निर्णय जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक और संवैधानिक ढांचे में एक ऐतिहासिक परिवर्तन था। इस कदम से जम्मू-कश्मीर की विशेष राज्य का दर्जा समाप्त हो गया, और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों - जम्मू-कश्मीर और लद्दाख - में विभाजित कर दिया गया। इस निर्णय ने राज्य के राजनीतिक दलों के बीच असंतोष और विरोध की स्थिति पैदा की, खासकर नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी जैसी प्रमुख क्षेत्रीय पार्टियों ने इसका कड़ा विरोध किया।

अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से अब तक जम्मू-कश्मीर में कोई विधानसभा चुनाव नहीं हुए हैं। केंद्र सरकार ने कहा है कि क्षेत्र में शांति और स्थिरता स्थापित होने के बाद ही चुनाव कराए जाएंगे। इस संदर्भ में, 2024 के विधानसभा चुनाव ऐतिहासिक होंगे, क्योंकि यह चुनावी प्रक्रिया जम्मू-कश्मीर के भविष्य की दिशा तय करेगी।

वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य

जम्मू-कश्मीर का वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य जटिल और ध्रुवीकृत है। एक ओर, बीजेपी सरकार अनुच्छेद 370 के निरस्त होने को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक मानती है और इसे क्षेत्र में शांति और विकास के नए युग की शुरुआत के रूप में पेश करती है। दूसरी ओर, क्षेत्रीय पार्टियां – नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस – इसे लोकतंत्र और राज्य की स्वायत्तता के हनन के रूप में देखती हैं।

बीजेपी ने घाटी में विकास, रोजगार, और निवेश को बढ़ावा देने का वादा किया है, जबकि विपक्षी दल सरकार पर लोगों के अधिकारों और संवैधानिक स्वतंत्रता को खत्म करने का आरोप लगाते हैं। इस तरह, 2024 के चुनाव न केवल राजनीतिक दलों के लिए बल्कि जम्मू-कश्मीर की जनता के लिए भी निर्णायक होंगे, क्योंकि वे देखेंगे कि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद उनके जीवन में क्या वास्तविक बदलाव आए हैं।

चुनावी मुद्दे और चुनौतियाँ

2024 के जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव कई महत्वपूर्ण मुद्दों और चुनौतियों के साथ सामने आएंगे:

1. विकास और आर्थिक स्थिति:

अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद, केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में बड़े पैमाने पर विकास परियोजनाओं का ऐलान किया। यहां की सड़कों, बिजली, पानी और अन्य बुनियादी ढांचे में सुधार के वादे किए गए। इसके अलावा, पर्यटन को बढ़ावा देने और निवेश को आकर्षित करने के लिए कई योजनाएं बनाई गईं। हालांकि, अभी तक इसका धरातलीय प्रभाव बहुत स्पष्ट नहीं दिखता। मतदाता यह देखना चाहेंगे कि क्या वास्तव में उनके जीवन स्तर में कोई सुधार हुआ है या नहीं।

2. रोजगार और युवाओं का असंतोष:

जम्मू-कश्मीर के युवाओं के बीच बेरोजगारी एक बड़ी समस्या बनी हुई है। 2019 के बाद से रोजगार के अवसरों में कोई खास सुधार नहीं देखा गया, और यह आगामी चुनावों में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन सकता है। युवा मतदाता अपने लिए बेहतर रोजगार के अवसरों की मांग करेंगे, और यह देखना होगा कि कौन सी पार्टी उनकी उम्मीदों पर खरा उतरती है।

3. धार्मिक और क्षेत्रीय ध्रुवीकरण:

जम्मू और कश्मीर का राजनीतिक ध्रुवीकरण हमेशा से धार्मिक और क्षेत्रीय आधार पर होता रहा है। जम्मू क्षेत्र हिंदू बहुल है, जबकि कश्मीर घाटी में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं। यह चुनाव भी इस ध्रुवीकरण से अछूता नहीं रहेगा। भाजपा जम्मू क्षेत्र में अपना आधार मजबूत करने की कोशिश करेगी, जबकि विपक्षी पार्टियां कश्मीर घाटी में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश करेंगी।

4. सुरक्षा और आतंकवाद:

जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा की स्थिति अभी भी नाजुक बनी हुई है। आतंकवादी गतिविधियां और सीमा पार से घुसपैठ की घटनाएं लगातार होती रहती हैं। चुनावी प्रक्रिया के दौरान यह एक बड़ा मुद्दा होगा। केंद्र सरकार द्वारा लागू की गई सुरक्षा नीतियों और आतंकवाद विरोधी उपायों की समीक्षा होगी, और मतदाता यह देखना चाहेंगे कि सरकार की नीतियां क्षेत्र में शांति बहाल करने में कितनी सफल रही हैं।

5. डीडीसी चुनाव और लोकतंत्र की बहाली:

2020 में जम्मू-कश्मीर में जिला विकास परिषद (डीडीसी) के चुनाव हुए थे, जिन्हें लोकतंत्र की बहाली की दिशा में पहला कदम माना गया था। हालांकि, राज्य विधानसभा चुनाव अभी तक नहीं हुए हैं। मतदाता अब यह देखना चाहेंगे कि क्षेत्र में लोकतंत्र और प्रतिनिधित्व की प्रक्रिया को कैसे बहाल किया जाता है।

राजनीतिक दलों की रणनीति

2024 के चुनावों में राजनीतिक दलों की रणनीति निर्णायक होगी।

1. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी):

बीजेपी ने अनुच्छेद 370 के निरस्त होने को एक बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रस्तुत किया है, और उसका मुख्य चुनावी मुद्दा विकास, सुरक्षा, और राष्ट्रवाद होगा। बीजेपी की रणनीति जम्मू के हिंदू बहुल क्षेत्रों में अपना आधार मजबूत करने और घाटी में अधिक से अधिक सीटें जीतने की होगी। इसके साथ ही, बीजेपी विकास और निवेश के वादों को आगे बढ़ाकर मतदाताओं को लुभाने की कोशिश करेगी।

2. नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP):

नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी ने अनुच्छेद 370 के निरस्त होने का कड़ा विरोध किया है और वे इसे मुख्य चुनावी मुद्दा बनाएंगी। वे जनता के बीच यह संदेश फैलाने की कोशिश करेंगी कि केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के स्वायत्तता का हनन किया है और उनके संवैधानिक अधिकारों को छीना है। इसके अलावा, वे रोजगार, विकास और सुरक्षा के मुद्दों को भी उठाएंगी।

3. कांग्रेस:

कांग्रेस भी अनुच्छेद 370 के निरस्त होने का विरोध करती है, लेकिन उसकी रणनीति अन्य क्षेत्रीय दलों की तुलना में अधिक संतुलित हो सकती है। कांग्रेस का फोकस राज्य में शांति, स्थिरता, और विकास के मुद्दों पर रहेगा।

4. नए राजनीतिक दल और अन्य खिलाड़ी:

जम्मू-कश्मीर में नए राजनीतिक दल और संगठन भी उभर रहे हैं, जो आगामी चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इनमें जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी (JKAP) जैसे नए दल शामिल हैं, जो खुद को वैकल्पिक राजनीतिक शक्ति के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं।

चुनाव की संभावनाएँ और चुनौतियाँ

2024 के जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव कई चुनौतियों और संभावनाओं के साथ आएंगे। एक ओर, सरकार द्वारा किए गए विकास कार्यों का मूल्यांकन किया जाएगा, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक असंतोष और क्षेत्रीय ध्रुवीकरण का प्रभाव भी महसूस होगा। सुरक्षा व्यवस्था, आतंकवाद, और सीमा पर तनाव के बीच चुनाव कराना एक बड़ी चुनौती होगी। इसके साथ ही, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की बहाली और जनता का विश्वास जीतना भी चुनाव की सफलता के लिए महत्वपूर्ण होगा।

चुनाव के परिणामों का प्रभाव

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव 2024 के परिणाम आने वाले वर्षों में इस क्षेत्र की राजनीति और प्रशासन पर गहरा प्रभाव डालेंगे। यदि बीजेपी चुनाव जीतती है, तो यह उसके अनुच्छेद 370 के निरस्त करने के निर्णय पर जनता की स्वीकृति के रूप में देखा जाएगा, और यह केंद्र सरकार के विकास और सुरक्षा के एजेंडे को आगे बढ़ाएगा। यह बीजेपी को घाटी में अपनी पकड़ मजबूत करने का अवसर देगा और उसे राज्य के विकास और सुरक्षा के लिए अपनी नीतियों को लागू करने का समर्थन मिलेगा।

वहीं, अगर नेशनल कॉन्फ्रेंस या पीडीपी जैसी क्षेत्रीय पार्टियां जीतती हैं, तो यह संकेत देगा कि जनता केंद्र सरकार की नीतियों से असंतुष्ट है और वे पुराने स्वायत्त ढांचे की वापसी की ओर देख रहे हैं। इस स्थिति में, अनुच्छेद 370 के निरस्त करने का मुद्दा फिर से चर्चा में आ सकता है और यह देशव्यापी राजनीतिक बहस का कारण बन सकता है।

इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर के चुनाव परिणामों का राष्ट्रीय राजनीति पर भी असर होगा, खासकर 2024 के लोकसभा चुनावों के दृष्टिकोण से। अगर बीजेपी यहां अच्छा प्रदर्शन करती है, तो यह पार्टी के लिए राष्ट्रव्यापी समर्थन की पुष्टि होगी। वहीं, विपक्षी दलों के लिए यह एक अवसर होगा कि वे इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करें और केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ अपने मुद्दों को जनता के सामने रखें।

भविष्य की राह

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव 2024 का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि चुनाव किस प्रकार से कराए जाते हैं और क्या चुनावी प्रक्रिया को स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से पूरा किया जाता है। इसके साथ ही, यह भी देखना होगा कि क्या सुरक्षा व्यवस्था प्रभावी रहती है और क्या चुनावी प्रक्रिया में हिंसा या असुरक्षा का माहौल नहीं बनता। जम्मू-कश्मीर के मतदाता इस चुनाव में अपने भविष्य के लिए एक स्पष्ट संदेश देंगे, और इस संदेश को राष्ट्रीय स्तर पर भी गंभीरता से लिया जाएगा।

आगामी चुनाव जम्मू-कश्मीर के लिए एक नई शुरुआत का अवसर हो सकते हैं। यह चुनाव न केवल लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली का प्रतीक होंगे बल्कि यह भी तय करेंगे कि जम्मू-कश्मीर भविष्य में कैसे प्रगति करेगा। विकास, रोजगार, सुरक्षा, और राजनीतिक स्थिरता इस चुनाव के मुख्य मुद्दे होंगे, और जनता का वोट यह तय करेगा कि कौन से दल या गठबंधन उनके इन मुद्दों को सही तरीके से हल कर पाएंगे।

निष्कर्ष

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव 2024 न केवल इस केंद्र शासित प्रदेश के लिए बल्कि पूरे देश के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होंगे। यह चुनाव

 जम्मू-कश्मीर के भविष्य की दिशा तय करेगा और यह दर्शाएगा कि अनुच्छेद370 के निरस्त होने के बाद के बदलावों का प्रभाव कितना गहरा और सकारात्मक रहा है। यह चुनाव जम्मू-कश्मीर की जनता के लिए एक अवसर होगा, जहां वे अपनी आकांक्षाओं और अपेक्षाओं के आधार पर निर्णय ले सकेंगे। साथ ही, इस चुनाव के परिणाम राष्ट्रीय राजनीति पर भी गहरा असर डालेंगे, क्योंकि जम्मू-कश्मीर में स्थिरता और शांति का प्रश्न देश की सुरक्षा और राष्ट्रीय एकता से भी जुड़ा हुआ है।



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