मनु हिन्दू धर्म के अनुसार, संसार के प्रथम पुरुष थे। प्रथम मनु का नाम स्वयंभुव मनु था, जिनके संग प्रथम स्त्री थी शतरूपा। ये स्वयं भू (अर्थात होना) ब्रह्मा द्वारा प्रकट होने के कारण ही स्वयंभू कहलाये। इन्हीं प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की सन्तानों से संसार के समस्त जनों की उत्पत्ति हुई। मनु की सन्तान होने के कारण वे मानव या मनुष्य कहलाए।
हिंदू धर्म में स्वायंभुव मनु के ही कुल में आगे चलकर स्वायंभुव सहित कुल मिलाकर कर 14 मनु हुए। महाभारत में 8 मनुओं का उल्लेख मिलता है व श्वेतवराह कल्प में 14 मनुओं का उल्लेख है। जैन ग्रन्थों में 14 कुलकरों का वर्णन मिलता है।
भगवान सूर्य का विवाह विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से हुआ। विवाह के बाद संज्ञा ने वैवस्वत और यम (यमराज) नामक दो पुत्रों और यमुना (नदी) नामक एक पुत्री को जन्म दिया। यही विवस्वान यानि सूर्य के पुत्र वैवस्वत मनु ( 7 वें मनु ) कहलाये।
श्रीमद्भागवत में इन्हीं वैवस्वत मनु और श्रद्धा से मानवीय सृष्टि का प्रारंभ माना गया है। महाराज मनु ने बहुत दिनों तक इस सप्तद्वीपवती पृथ्वी पर राज्य किया। इन्हीं ने मनुस्मृति नामक ग्रन्थ की रचना की थी जो आज मूल रूप में उपलब्ध नहीं है ।
क्या है प्रमाणिकता मनुस्मृति की ?
ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार महाभारत की रचना 3150 ईसा पूर्व में माना जाता है। 'महाभारत' में महाराजा मनु की चर्चा बार-बार की गई है, किंतु मनुस्मृति में महाभारत, कृष्ण या वेदव्यास का नाम तक नहीं है।
उसी तरह आधुनिक शोध के अनुसार राम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व हुआ था अर्थात आज से 7,129 वर्ष पूर्व। लगभग इसी काल में वाल्मीकिजी ने रामायण लिखी थी। महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण में मनुस्मृति के श्लोक व महाराज मनु की प्रतिष्ठा मिलती है किंतु मनुस्मृति में वाल्मीकि या भगवान राम आदि का नाम तक नहीं मिलता। महाभारत और रामायण में ऐसे कुछ श्लोक हैं, जो मनुस्मृति से ज्यों के त्यों लिए गए हैं। अतः यह कहा जा सकता है कि 'मनु महाराज' भगवान श्रीकृष्ण और राम से पहले हुए थे ।
धर्मशास्त्रीय ग्रंथकारों के अतिरिक्त शंकराचार्य, शबरस्वामी जैसे दार्शनिक भी प्रमाणरूपेण इस ग्रंथ को उद्धृत करते हैं। कुछ विद्वान मानते हैं कि परंपरानुसार यह स्मृति स्वायंभुव मनु द्वारा रचित है, वैवस्वत मनु या प्राचनेस मनु द्वारा नहीं। महाभारत ने स्वायंभुव मनु एवं प्राचेतस मनु में अन्तर बताया है, जिनमें एक धर्मशास्त्री एवं दूसरे अर्थशास्त्री थे ।
हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार राजा वैवस्वत मनु का जन्म 6382 विक्रम संवत ( 6324 ईसा पूर्व ) को हुआ था। इसका मतलब कि आज से 8,340 वर्ष पूर्व राजा मनु का जन्म हुआ था। वैवस्वत मनु को श्राद्धदेव भी कहते हैं। इनसे पूर्व 6 और मनु हो चुके थे स्वायंभुव मनु प्रथम मनु हैं, तो क्या प्रथम मनु के काल में मनुस्मृति लिखी गई? स्वायंभुव मनु का जन्म 9057 ईसा पुर्व में हुआ था।
कुछ इतिहासकार मानते हैं कि उनका काल 9000 से 8762 विक्रम संवत के बीच का था अर्थात 8942 ईसा पूर्व उनका जन्म हुआ था। इसका मतलब आज से 10,956 वर्ष पूर्व प्रथम राजा स्वायंभुव मनु थे। तो कम से कम आज से 10,000 वर्ष पुरानी है हमारी 'मनुस्मृति'।
कब लिखी गई होगी मनुस्मृति ?
1932 में जापान ने बम विस्फोट द्वारा चीन की ऐतिहासिक दीवार को तोड़ा तो उसमें से एक लोहे का ट्रंक मिला जिसमें चीनी भाषा की प्राचीन पांडुलिपियां भरी थीं। ये पांडुलिपियां सर आगस्टस रिट्ज जॉर्ज के हाथ लग गईं और उन्होंने इसे ब्रिटिश म्यूजियम में रखवा दिया था। उन पांडुलिपियों को प्रोफेसर एंथोनी ग्रेम ने चीनी विद्वानों से पढ़वाया तो यह जानकारी मिली कि........
चीन के राजा शी लेज वांग ने अपने शासनकाल में यह आज्ञा दी कि सभी प्राचीन पुस्तकों को नष्ट कर दिया जाए। इस आज्ञा का मतलब था कि कि चीनी सभ्यता के सभी प्राचीन प्रमाण नष्ट हो जाएं। तब किसी विद्याप्रेमी ने पुस्तकों को ट्रंक में छिपाया और दीवार बनते समय चुनवा दिया। संयोग से ट्रंक विस्फोट से निकल आया। चीनी भाषा के उन हस्तलेखों में से एक में लिखा है कि मनु का धर्मशास्त्र भारत में सर्वाधिक मान्य है, जो वैदिक संस्कृत में लिखा है और 10,000 वर्ष से अधिक पुराना है तथा इसमें मनु के श्लोकों की संख्या 630 भी बताई गई है।
इस दीवार के बनने का समय लगभग 220 से 206 ईसा पूर्व का है अर्थात लिखने वाले ने कम से कम 220 ईसा पूर्व ही मनु के बारे में अपने हस्तलेख में लिखा। 220+10,000= 10,220 ईसा पूर्व मनुस्मृति लिखी गई होगी अर्थात आज से 12,234 वर्ष पूर्व मनुस्मृति उपलब्ध थी।
( निष्कर्ष :- मनुस्मृति की रचना वैवस्वत मनु द्वारा 12,234 वर्ष पूर्व की गई थी । )
क्या है मनुस्मृति ?
‘मनुस्मृति ‘महर्षि मनु की विचारधारा है।’ मनुस्मृति में वर्णित मौलिक सिद्धान्तों के अनुसार मनु की विचारधारा है- ‘गुण, कर्म, योग्यता के श्रेष्ठ मूल्यों पर आधारित वर्णाश्रम-व्यवस्था। मनु की वर्णव्यवस्था ऐसी समाजव्यवस्था थी जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपनी रुचि, गुण, कर्म एवं योग्यता के आधार पर किसी भी वर्ण का चयन करने की स्वतन्त्रता थी और वह स्वतन्त्रता जीवनभर रहती थी। उस वर्णव्यवस्था में जन्म का महत्व उपेक्षित था, ऊंच-नीच, छूत-अछूत का कोई भेदभाव नहीं था, व्यक्ति-व्यक्ति में असमानता नहीं थी, पक्षपातपूर्ण और अमानवीय व्यवहार सर्वथा निन्दनीय था। एक ही शब्द में कहें तो मनुस्मृति मानववाद का ही दूसरा नाम था।
मनु कहते है- धर्मो रक्षति रक्षित:। अर्थात जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है। यदि वर्तमान संदर्भ में कहें तो जो कानून की रक्षा करता है कानून उसकी रक्षा करता है। कानून सबके लिए अनिवार्य तथा समान होता है।
मनु कहते हैं- जन्मना जायते शूद्र: कर्मणा द्विज उच्यते। अर्थात जन्म से सभी शूद्र होते हैं और कर्म से ही वे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र बनते हैं।
मनुवाद क्या है ?
इसमें कोई संदेह नहीं है कि ‘मनुवाद’ शब्द का प्रयोग आज जान-बूझ कर गलत अर्थ में किया जा रहा है और इसे एक सोची-समझी रणनीति के अन्तर्गत किया जा रहा है, ताकि एक बहुत बड़े जनसमुदाय को भारत के अतीत और अन्य समुदायों से काटकर अलग-अलग किया जा सके। यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि स्वयं को कोई कितना ही विद्वान्, लेखक, समीक्षक, विचारक या इतिहासवेक्ता कहे, ‘मनुवाद’ को जातिव्यवस्था के संदर्भ में प्रयुक्त करने वाला व्यक्ति मनुस्मृति का मौलिक, गम्भीर, विश्लेषणात्मक और यथार्थवादी नहीं माना जा सकता। उसने जो कुछ पढ़ा है वह छिछले तौर पर, और दूसरों के दृष्टिकोण से पढ़ा है; क्योंकि, मौलिक रूप से ‘मनुस्मृति’ उस मनु की रचना है जो भारतीय इतिहास का क्षत्रियवर्णधारी आदिराजा था। ऐतिहासिक दृष्टि से उस समय जाति-व्यवस्था का उद्भव ही नहीं हुआ था। जब जाति-व्यवस्था का उद्भव ही नहीं हुआ था, तो ‘मनुवाद’ का जाति-व्यवस्थापरक अर्थ करना ऐतिहासिक अज्ञानता, मनुस्मृति-ज्ञान की शून्यता और दुराग्रह मात्र ही है ।
क्या मनुस्मृति दलित विरोधी है ?
हमारे प्राचीन समाज में ऐसे कई उदाहरण है, जब व्यक्ति शूद्र से ब्राह्मण बना। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के गुरु वशिष्ठ महाशूद्र चांडाल की संतान थे, लेकिन अपनी योग्यता के बल पर वे ब्रह्मर्षि बने। एक मछुआ (निषाद) मां की संतान व्यास महर्षि व्यास बने। विश्वामित्र अपनी योग्यता से क्षत्रिय से ब्रह्मर्षि बने। ऐसे और भी कई उदाहरण हमारे ग्रंथों में मौजूद हैं, जिनसे इन आरोपों का स्वत: ही खंडन होता है कि मनु दलित विरोधी थे।
शूद्रो ब्राह्मणतामेति ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम।
क्षत्रियाज्जातमेवं तु विद्याद्वैश्यात्तथैव च। (मनुस्मृति अध्याय10 श्लोक65)
मनु कहते हैं कि कर्म के अनुसार ब्राह्मण शूद्रता को प्राप्त हो जाता है और शूद्र ब्राह्मणत्व को। इसी प्रकार क्षत्रिय और वैश्य से उत्पन्न संतान भी अन्य वर्णों को प्राप्त हो जाया करती हैं। विद्या और योग्यता के अनुसार सभी वर्णों की संतानें अन्य वर्ण में जा सकती हैं।
मनु के शूद्र का तात्पर्य क्षुद्र से था जिसका अर्थ है वह मनुष्य जो गंदगी में रहता है अर्थात कोई भी मनुष्य जो गंदगी में रहता है मनु के अनुसार वह शूद्र था । मनु ऐसे मनुष्य को समाज द्वारा बहिष्कृत करते हैं इसी क्षुद्र को आधुनिक अवसरवादी विद्वानों ने एक अलग जाति बना दिया और यहीं से प्रारंभ होता है जातिवाद की राजनीति ।
हमारे अगले Article "manuvaad vs ambedakar - part 2" में पढे़ 'भीम राव अम्बेडकर' के बारे में ।
manuvaad vs ambedakar - part 2 पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें -
https://rajneetiksameeksha.blogspot.com/2018/06/manuvaad-vs-ambedakar-part-2.html
manuvaad vs ambedakar - part 2 पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें -
https://rajneetiksameeksha.blogspot.com/2018/06/manuvaad-vs-ambedakar-part-2.html
0 Comments