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joshimath |
दिल्ली से 513 किलोमीटर दूर उत्तराखंड के चमोली जिले में 8200 फीट की ऊंचाई पर एक आध्यात्मिक कस्बा है जिसका नाम है जोशीमठ, यह वही ज्योतिर्मठ है जहां आठवीं शताब्दी के धर्म सुधारक आदि गुरु शंकराचार्य को एक शहतूत के पेड़ के नीचे ज्ञान ( ज्योति ) की प्राप्ति हुई , यहीं उन्होंने देश के चार ज्योतिष मठों में पहले ज्योतिष मठ की स्थापना की । 7वीं से 11वीं सदी के बीच कुमाऊं एवं गढ़वाल पर कत्यूरी वंश का शासन था तब यही जोशीमठ इस वंश की राजधानी रहा तब इसका नाम कार्तिकेयपुर था इसका उल्लेख पांडुकेश्वर में पाये गये कत्यूरी राजा ललितशूर के तांब्रपत्र में मिलता है । जोशीमठ अध्यात्म का द्वार है क्योंकि हिंदू धर्म के दो प्रसिद्ध तीर्थ स्थल केदारनाथ यहां से महज 51 किलोमीटर की दूरी पर तथा बद्रीनाथ मात्र 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है तथा सिखों का प्रमुख धार्मिक स्थल हेमकुंड साहिब यहां से मात्र 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, बद्रीनाथ, केदारनाथ, हेमकुंड साहिब तथा फूलों को घाटी की यात्रा यहीं से प्रारंभ होती है ।
जोशीमठ की यात्रा एक अलग ही आध्यात्मिक और प्राकृतिक रोमांच की अनुभूति कराती है हिमालय की तलहटी में बसे ऋषिकेश से गंगा नदी के साथ साथ जब हम देवप्रयाग पहुंचते हैं तो भागीरथी से हमारा साथ छूट जाता है और अलकनंदा के साथ-साथ हम रुद्रप्रयाग पहुंचते हैं रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी से मिलने के बाद फिर अलकनंदा के साथ-साथ गोपेश्वर होते हुए जोशीमठ पहुंचते हैं अलकनंदा के आंचल में बसा यह आध्यात्मिक शहर आज दरक रहा है यहां के लोग अपना सब कुछ छोड़ कर यहां से पलायन करने को विवश हो रहे हैं ।
जोशीमठ में प्रकृति अपने साथ हो रहे अन्यायों का संकेत पहली बार नहीं दे रही है इतिहासकार शिवप्रताप डबराल ने अपनी पुस्तक में बताया है की कत्यूरी वंश के शासकों को भी इन्हीं प्राकृतिक घटनाओं के कारण अपनी राजधानी को स्थानांतरित करना पड़ा था । सन 1939 में आर्नोल्ड हेम तथा ओगेस्ट गैंसर ने अपनी पुस्तक सेंट्रल हिमालया में बताया था कि जोशीमठ एक भूस्खलन के मलबे पर बसा हुआ है अर्थात जोशीमठ की सतह एक ठोस चट्टान ना होकर रेत तथा छोटे छोटे पत्थर के टुकड़े हैं अर्थात किसी प्रकार के बड़े निर्माण ड्रिलिंग तथा विस्फोट की वजह से इसकी सतह खिसक सकती है या धस सकती है ।
1964 में जोशीमठ जब एक बार फिर भूतल की ओर अग्रसर हुआ तो केंद्र सरकार ने तत्कालीन गढ़वाल कमिश्नर महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया जिसे मिश्रा कमेटी के नाम से जाना गया इस कमेटी का प्रमुख कार्य था कि वह जोशीमठ की भौगोलिक तथा भूगर्भिक स्थिति का पता लगाएं इस कमेटी ने अपने कार्यों को बखूबी अंजाम दिया तथा 1976 में जोशीमठ को लेकर अपनी रिपोर्ट पेश की मिश्रा कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि जोशीमठ जिस स्थान पर बसा हुआ है वह किसी ग्लेशियर के द्वारा लाए गए मलवे ( मोरैन ) पर बसा हुआ है अर्थात इसका आधार स्थिर नहीं है और बहुत कमजोर है अतः इस पर किसी प्रकार के बड़े निर्माण कार्य, पहाड़ों का कटाव, पहाड़ों में ड्रिलिंग तथा पहाड़ों में विस्फोट नहीं होने चाहिए तथा जोशीमठ के आसपास के क्षेत्रों में वृक्षारोपण कर भूमि को कटाव से बचाने का प्रयास किया जाना चाहिए , और किसी कारण यदि बड़े निर्माण की आवश्यकता पड़ रही है तो उस स्थान का जूलॉजिकल सर्वे कराना अनिवार्य होगा ।
सन 2000 में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ जूलॉजी ने अपनी एक रिपोर्ट जारी की जिसमें उसने बताया कि जोशीमठ प्रतिवर्ष 85mm नीचे की ओर सरक रहा है इन तमाम सर्वे एवं रिपोर्टों को अनदेखा कर सरकार ने जोशीमठ में वह सब कुछ किया और वह सब कुछ करने की इजाजत दी जो उसे नहीं करना था सरकार की इसी हठधर्मिता तथा विकास के नाम पर किए जा रहे विनाश कार्यों का हर्जाना आज जोशीमठ की जनता को अपनी संपत्ति से चुकानी पड़ रही है । शायद जीवन भर की संपत्ति से।
1962 के चीन युद्ध के बाद जोशीमठ में आर्मी कैंप का निर्माण किया गया जो शायद देश हित के लिए अनिवार्य था परंतु इसके बाद सरकारों ने विकास के नाम पर जोशीमठ में जो विनाश लीला की शायद उसकी आवश्यकता नहीं थी आज जोशीमठ दरक रहा है इसरो के अनुसार भी जोशीमठ प्रतिपल नीचे की ओर सरक रहा है जो भी हो पर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि जोशीमठ में अनियंत्रित निर्माण कार्य और सरकार की लाभकारी योजनाओं के कारण ही आज जोशीमठ का अस्तित्व खतरे में है जोशीमठ के स्थानीय लोगों के अनुसार एनटीपीसी का विष्णुगार्ड जल विद्युत परियोजना आज जोशीमठ की वर्तमान स्थिति का प्रमुख कारण है क्योंकि विष्णुगार्ड जल विद्युत परियोजना के तहत जोशीमठ के ठीक नीचे से पर्वतों को काटकर 12 किलोमीटर लंबी सुरंग का निर्माण किया जा रहा है , विगत वर्षों में इसी सुरंग की खुदाई कार्य के दौरान जोशीमठ के नीचे भूमिगत जल को भारी मात्रा में नुकसान हुआ था जिससे जोशीमठ में पेयजल की समस्या उत्पन्न हो गई थी तथा एनटीपीसी को एक समझौते के तहत इसका हर्जाना भी देना पड़ा था स्थानीय लोगों का मानना है कि जोशीमठ की वर्तमान स्थिति का प्रमुख कारण यही सुरंग है ।
मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट को सरकार ने अनदेखा कर दिया तथा उसके बाद सरकार ने एनटीपीसी को बिष्णुगार्ड जल विद्युत परियोजना की मंजूरी दी इसके अलावा हिलांग विष्णुप्रयाग बाईपास को मंजूरी दी गई तथा चार धाम जोड़ो परियोजना के तहत भी सड़कों का निर्माण कार्य जारी है आर्मी कैंप की वजह से सड़कों का चौड़ीकरण का कार्य भी किया जा रहा है इन तमाम निर्माण कार्यों के अलावा जोशीमठ एक प्रमुख धार्मिक और पर्यटक स्थल के रूप में विकसित हुआ है जिसके कारण यहां पर दिन प्रतिदिन जनसंख्या बढ़ती गई तथा उस बढ़ती जनसंख्या की वजह से भी वहां पर अनियंत्रित निर्माण कार्य किए गए ।
भू वैज्ञानिकों ने जोशीमठ को लेकर एक बात तो साफ कर दी है कि अब जोशीमठ को बचाया नहीं जा सकता अतः सरकारों को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि वहां की जनता को किसी सुरक्षित स्थान पर कैसे पहुंचाया जाए तथा उनके जीवन को पुनः कैसे सुचारू किया जाए । पर ! क्या सरकार द्वारा अब जो कुछ भी जोशीमठ की जनता के लिए किया जाएगा वह पर्याप्त होगा क्या इस बात के निश्चितता है की जोशीमठ जैसी घटना हिमालय की किसी अन्य क्षेत्र में नहीं होगी संपूर्ण हिमालय एक नवीन वलित पर्वत है तथा भूकंप जोन 5 के अंतर्गत आता है अतः संपूर्ण हिमालय में कहीं भी किसी भी समय इस तरह की घटना हो सकती है यही सच्चाई है इस सच्चाई को सरकारें भी जानती हैं और लोग भी जानते हैं फिर भी हिमालय में अनियंत्रित निर्माण कार्य किए जा रहे हैं तथा असुरक्षित परियोजनाओं को मंजूरी दिया जा रहा है हिमालय का सीना चीर कर सड़कों का निर्माण किया जा रहा है आखिर प्रकृति कब तक मनुष्य द्वारा किए जा रहे हैं इस विनाश लीला को यूं ही देखती और सहती रहेगी प्रकृति अपने साथ किए गए अन्यायों का अब हिसाब ले रही है और शायद अभी तो प्रकृति के न्याय का यह प्रारंभ है ........
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