राष्ट्रवाद बनाम फर्जी राष्ट्रवाद

राष्ट्रवाद
( भारतीय जनता पार्टी के परिपेक्ष्य में )
देश में मौजूदा राष्ट्रवाद पर आज विचार करना नितांत आवश्यक है भाजपा अपने प्रारम्भिक दिनों से ही राष्ट्रवाद का समर्थक तथा आधुनिक प्रवर्तक बनी रही है । भाजपा के संस्थापक सदस्यों ने राष्ट्रवाद की गरिमा को बनाए रखते हुए उसे प्रचारित किया समझाया और एक उत्कर्ष तक पहुँचाया । अटल जी नें तो वास्तविक राष्ट्रवाद को चरम तक पहुँचाया जिसके कारण हम कारगिल जैसा कठिन युद्ध भी जीतने में सफल रहे । धीरे धीरे भाजपा में नेता बदलते रहे और उसके साथ साथ राष्ट्रवाद का स्वरूप भी बदलता गया आज भाजपा में इष्ट गणपति व्यवस्था स्थापित हो चुका है और राष्ट्रवाद ने फर्जी राष्ट्रवाद का रूप ले लिया है । और सारे राष्ट्र विरोधी कार्य इसी की आड़ में किए जा रहें है और गोदी मीडिया द्वारा इसे प्रमाणित करवाया जा रहा है ।
" एक ध्वज एक राष्ट्र " का नारा देने वाली भाजपा सत्ता के लोभ में कश्मीर में दो ध्वज के नीचे बैठकर  कश्मीरी बुआ के सामने श्यामा प्रसाद मुखर्जी के कश्मीर के सपने को नीलाम कर गठबंधन की सरकार बनाती है ।
देश मे फर्जी राष्ट्रवाद को इस तरह प्रचारित किया गया है की आज देश हित की बात करना ही राष्ट्र द्रोह बन चुका है । मौजुदा प्रधानमंत्री देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री बन चुके हैं जिनका विरोध नहीं हो सकता ।  प्रधानमंत्री पद राष्ट्र का पर्यायवाची बन चुका है, एक व्यक्ति को राष्ट्र में बदलने का भक्तों द्वारा संभव प्रयास किया जा रहा है ।  मौजूदा प्रधानमंत्री हमारे देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने अपने समर्थक नहीं भक्त बनाए हैं अब देश में मोदी भक्ति को राष्ट्रभक्ति और मोदी विरोध को राष्ट्र विरोधी समझा जाने लगा गया है
राष्ट्रवाद को दुष्प्रचारित कर उसे हिन्दूवाद और जातिवाद तक सीमित किया जा रहा है राष्ट्रवाद एक व्यापक शब्द है ये जहाँ होता है वहाँ इससे बड़ा कुछ नही होता एक राष्ट्र के अंदर मौजुद सभी लोग, वस्तु, संस्थाऐं, तंत्र तथा दल आदि से बड़ा राष्ट्र होता है इसका हित सर्वोपरि होता है । पर आज के शिक्षित भक्तो ने इसे समेट कर मोदी, भाजपा, और हिन्दूवाद कर दिया है । आज मोदी, भाजपा, और हिन्दूवाद राष्ट्रवाद से बड़ा प्रतीक होने लगा है ।
राष्ट्रवाद के साथ सबसे बड़ी खूबी यह है कि कोई भी बिना जाने इसे जानने का दावा कर सकता है। 19वीं सदी से पहले तो इसके बारे में कोई जानता ही नहीं था लेकिन पिछले 200 सालों में राष्ट्र और राष्ट्रवाद का स्वरूप उभरता चला गया। इन 200 सालों में राष्ट्रवाद के नाम पर फासीवाद भी आया जब लाखों लोगों को गैस चैंबर में डाल कर मार दिया गया। हमारे ही देश में राष्ट्रवाद का नाम जपते जपते आपात काल भी आया और दुनिया के कई देशों में एकाधिकारवाद जिसे अंग्रेजी में टोटेलिटेरियन स्टेट कहते हैं। जिसमें आप वो नहीं करते जो राज्य और उसके मुखिया को पसंद नहीं।
सत्ता पर जिस पार्टी का कब्ज़ा होता है वो पुलिस के दम पर आपके नाक में दम कर देती है। मेरी राय में राजनीतिक दलों के पास राष्ट्रवाद की अंतिम परिभाषा नहीं होती है न होनी चाहिए। मैंने कहा कि राजनीतिक दलों के पास राष्ट्रवाद की अंतिम परिभाषा तब होती है जब उनका इरादा लोकतंत्र को खत्म कर देना होता है।
 असम में ही बोडो अलग राज्य की मांग करते रहे हैं लेकिन उनके एक गुट के साथ कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था। इसी देश में अगल खालिस्तान की मांग को लेकर ख़ून खराबा हो चुका है। क्या राम जेठमलानी ने इंदिरा गांधी की हत्या से जुड़े लोगों का मुकदमा नहीं लड़ा था। क्या जेठमलानी को बीजेपी ने राज्य सभा का सदस्य नहीं बनाया। पार्टी में शामिल नहीं किया। पीडीपी की अफज़ल गुरु के बारे में क्या राय है कौन नहीं जानता। उनके साथ किसने सरकार बनाई कौन नहीं जानता।
दिक्कत ये है कि जब इतिहास पढ़ने की बारी आती है तो आप और हम इतिहास का मज़ाक उड़ाते हैं। फिर जब राजनीति करनी होती है तो इतिहास की अनाप शनाप व्याख्याएं करने लगते हैं। मौजूदा समय में राष्ट्रवाद का राजनीतिक इस्तेमाल राष्ट्रवाद की कोई नई समझ पैदा कर रहा है या जो पहले कई बार हो चुका है उसी का बेतुका संस्करण है। यह ख़तरनाक प्रवृत्ति है या लोग ऐसे ख़तरों से निपटने में सक्षम हैं।
 जब हमारे मन में राष्ट्रवाद और फर्जी राष्ट्रवाद को लेकर एक द्वंद पैदा हुआ तो हमारे मन में विचार आया कि क्यों ना राष्ट्रवाद को वहां से समझा जाए जहां से इसकी शुरुआत हुई और तब हमने ऋग्वेद का वह दसवां मंडल पड़ा जिसमें पहली बार राष्ट्रवाद को परिभाषित किया गया और तब हमें यह समझ में आया कि आज भाजपा जिस राष्ट्रवाद की बात कर रही है यह राष्ट्रवाद कम से कम वह तो नहीं है ।

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