समाज का वर्ग विभाजन
आज के इस आधुनिक युग में अगर प्लेटो, अरस्तू, हीगल, मार्क्स जैसे विचारक जिन्होंने समाज को विभिन्न वर्गों में विभाजित किया । होते तो शायद वह समाज द्वारा बहिष्कृत होते क्योंकि उनकी विद्वता आज के आधुनिक विद्वानों के सामने कुछ भी नहीं है जिन्होंने समाज को दो वर्गो में विभाजित करने का महान कार्य किया है जिसमें एक वर्ग को भक्त और दूसरे वर्गों को चमचों का नाम दिया । अब यह भक्त और चमचे कौन है ? किन्होंने बनाया ? कैसे बने ? इसका वर्गीकरण किसने किया ? शायद हम नहीं जानते पर आज भारत इन्हीं दो वर्गों में बंटा हुआ है । आज भारत का वह शिक्षित वर्ग जो बुद्धिजीवी वर्ग में गिने जाते हैं वह समाज को इन दो वर्गों में विभाजित कर आरोप प्रत्यारोप करने की कोशिश की जा रही है या किया जा रहा है यह बुद्धिजीवी वर्ग दोनों वर्गों में है और दोनों एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए अपने-अपने कुतर्क लगातार दे रहें अब सही कौन है और गलत कौन है इसका फैसला शायद हम आप नहीं कर सकते पर हम उन तर्को और कुतर्कों को समर्थन तो दे रहें हैं किस आधार पर दे रहे हैं हमें खुद नहीं पता ।
बहुत दिनों से गोदी मीडिया द्वारा ये सुना जा रहा था, और अब ये सुनना तो आम बात हो गयी है। यदि आपकी बात से कोई सहमत नही है तो उसे किसी पार्टी विशेष का भक्त बोल दिया जाता या फिर चमचा बोला जाता है । सिर्फ इसलिए की उसके विचार मनोभाव दुसरे वर्ग से नही मिलते । ये एक तरह से उन विकृत मानसिकताओं से पूर्ण मुर्ख लोगो पर किसी राजनीतिक गुलामी या यूँ कँहे की मानसिक तानाशाही है । जब आप किसी को भक्त, या चमचे का ख़िताब देते है उसके लिए अनुचित शब्दों का प्रयोग करते है, तो समझ में नही आता की फिर हम अपने आप को किस वर्ग में रखतें है ।

इस वर्ग विभाजन के बाद यह जानना मुश्किल हो गया है किस देश में वाक् स्वतंत्रता की आजादी किस वर्ग को दी गई है ? किसी पार्टी विशेष के कार्यकर्ताओं को या सभी को ? आज देश के बारे में कुछ भी बोलते हुए यह सोचना पड़ता है कि आज का बुद्धिजीवी वर्ग यह बोलने के बाद हमें किस वर्ग में रख देगा । देश के सभी महत्वपूर्ण मुद्दों को चर्चा के नाम पर यह गोदी मीडिया तोड़-मरोड़कर इस तरह पेश कर रही है की जनता उस पर सवाल ही ना उठा सके और अगर कोई उठाता है तो आज एक विशेष वर्ग उसे भक्त या चमचों के श्रेणी में रख देता है इस तरह उन सभी मुद्दों से जनता का ध्यान हटा दिया जाता है जिसके बारे में सभी राजनीतिक दल चुनाव से पहले अपने अपने घोषणा पत्रों में किए होते हैं।
देश में इस तरह वर्ग विभाजन का जो माहौल तैयार किया जा रहा है और उसके द्वारा जिस तरह युवाओं की सोच की दिशा को बदला जा रहा है उससे यह बात तो स्पष्ट हो जाती है कि देश की शासन व्यवस्था को अधिनायक तंत्र में बदलने का अथक प्रयास किया जा रहा है । देश में विगत वर्षों में जिस तरह के चुनाव परिणाम आए हैं और आ रहे हैं वो किसी एक वर्ग के लिए तो अच्छे हो सकते हैं पर लोकतंत्र के लिए नहीं क्योंकि लोकतंत्र में विपक्ष की एक अहम भूमिका होती है जिस को समाप्त करने की पूरी कोशिश की जा रही है एक मजबूत विपक्ष का होना लोकतंत्र के लिए नितांत आवश्यक होता है इसके अभाव में लोकतंत्र लोकतंत्र न रहकर अधिनायक तंत्र में कब बदल जाता है हमें पता तक नहीं चलता और यहीं से शुरुआत होती है अल्पतंत्र के लौह नियम की ।
अगर इसी तरह भक्त और चमचों की कुप्रथा को अनदेखा किया गया तथा बुद्धिजीवी वर्गों द्वारा समर्थन मिलता रहा और देश के युवाओं द्वारा यह न समझा गया तो वह दिन दूर नहीं है जब देश की पूरी शासन व्यवस्था कुछ लोगों के हाथों में आ जाएगी और देश की जनता हिंदू - मुस्लिम, और भक्त - चमचें इन्हीं मुद्दों में अटकी रह जाएगी और देश के सभी महत्वपूर्ण मुद्दे गोदी मीडिया के लिए व्यवसाय व देश का खजाना हमारे नेताओं के ऐशो-आराम का साधन बन जाएगा । फिर कोई चाह कर भी विरोध नहीं कर पाएगा क्योंकि तब तक पूरी तरह से "अल्पतंत्र का लौह नियम" लागू हो चुका होगा ।
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