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पुलवामा की राजनीति |
पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद अब उस पर राजनीतिक हमले का दौर शुरू
पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद अब उस पर राजनीतिक हमले का दौर शुरू हो चुका है या यूं कहें कि राजनीतिक हमले का दौर अपने अंतिम चरण पर है भारत के राजनेता इसका राजनीतिक फायदा उठाने का कोई अवसर नहीं छोड़ रहे हैं । 14 फरवरी को पुलवामा में आतंकी हमला हुआ जिसमें हमारे 40 से अधिक जवान शहीद हो गए । उस दिन पूरा देश शोक में था, 15 और 16 तारीख में पूरे देश में देशभक्ति की लहर दौड़ रही थी देश के सभी नेता, पक्ष और विपक्ष दोनों के, देश की जनता, मीडिया सब सेना के साथ खड़े थे । उस दु:ख की घड़ी में पूरा देश एक नजर आ रहा था । हमारे देश के कुछ अवसरवादी नेताओं ने इस हमले का राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश तो की मगर हमारे माननीय प्रधानमंत्री महोदय जी ने अपने भाषणों में देश को संबोधित करते हुए इस अवसर का कोई राजनीतिकरण ना हो इसका आह्वान किया और उसके बाद किसी नेता की तरफ से किसी राजनीतिक दल की तरफ से इस पर कोई राजनीतिक टिप्पणी नहीं की गई ऐसा लगा जैसे वास्तव में इस पर कोई राजनीति नहीं होगी और जल्द से जल्द पुलवामा हमले के आतंकियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी । पर शायद यह एक भ्रम था । शहादत के दो-तीन दिनों के अंदर देश में जो कुछ भी चल रहा था उन सब को देख कर हमारे शहीदों की आत्माएं प्रफुल्लित हो गई होंगी । पर उसके बाद जब इस पर राजनीति शुरू हुई और आज इस पर जो कुछ हो रहा है उसे देख कर उन्ही शहीदों की आत्माएं अपने आप को कोस रही होंगी कि हमने किन मूर्खों के लिए अपनी जान का बलिदान कर दिया ।
हमारे शहीदों के परिवारों के आंसू अभी सूखे भी नहीं होंगे हमारे शहीदों की चिताएं अभी ठंडी भी नहीं हुई होंगी और हमारे देश के युवाओं के दिलों में जल रही आग भी अभी ठंडी नहीं हुई कि हमारे देश के राजनेता सब कुछ भूल कर सारी मानवता सारी इंसानियत को ताक पर रखकर इस मार्मिक घटना पर भी राजनीति करने लगे हैं । हमारे शहीदों नें स्वर्ग में जब यह जाना होगा कि जिस समय वह किसी दरिंदे की वहशीयाना हरकत का शिकार हो गए थे । उनके शरीर के मांस के लोथड़े सड़क से बटोरे जा रहे थे । उनके शरीर के कुछ अंग बारूद में जल रहे थे उस वक्त हमारे देश के प्रधानमंत्री कहीं शूटिंग कर रहे थे और इस घटना के बहुत देर बाद तक शायद करते रहे थे तब उन्हें कैसा लगा होगा । जब उन्होंने यह जाना होगा कि जिस देश के लिए उन्होंने अपनी जान दे दी उसी देश के कुछ नेता इतने अमानवीय हो सकते हैं कि उन्हें उनकी शहादत की कोई परवाह नहीं वे उस वक्त भी अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे थे, तब उन्हें कैसा लगा होगा ।
कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने जब इस मामले को लेकर कुछ सवाल उठाए तो हमारे भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ताओं और पक्षकारों ने यह कहा कि सुरजेवाला जी इस पर राजनीति करने की कोशिश कर रहे हैं । नवजोत सिंह सिद्धू ने जब पाकिस्तान से शांति की बात की तब उन्हें देशद्रोही कहा गया । अर्थात उस समय जिस समय हमारे 40 जवान शहीद हुए हैं पूरा देश बदले की आग में जल रहा हो और पूरा देश यह चाहता हो कि पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाए ऐसे में कोई शांति की बात करें तो हो सकता है वह गलत हो । हम उन लोगों से जानना चाहते हैं जिन लोगों ने नवजोत सिंह सिद्धू और तमाम वह लोग जिन्होंने इस हालात में समझौते और शांति की बाद की उन लोगों को देशद्रोही कहा क्या वह लोग बता सकते हैं कि जब देश युद्ध की मांग कर रहा हो, सारी मीडिया देश की सारी जनता बदले की बात कर रही हो, आक्रोश की बात कर रही हो ऐसे में हमारे देश के माननीय प्रधानमंत्री महोदय जी का दक्षिण अफ्रीका जाकर शांति पुरस्कार प्राप्त करना क्या है ? अगर देश के अंदर कुछ लोगों का शांति पर बात करना देशद्रोह हो सकता है तो प्रधानमंत्री जी का देश से बाहर जाकर शांति पुरस्कार लेना क्या है ?
हमने अपने एक ब्लॉग " समाज का सच " में लिखा था कि आज का समाज संवेदना विहीन हो चुका है तब हमें उस समय कुछ लोगों के द्वारा दया और प्रेम के उपदेश सुनने पड़े थे हम उन दया और प्रेम के उपदेश देने वाले लोगों से जानना चाहते हैं कि क्या आज पुलवामा हमले में हमारे शहीद हुए जवानों की शहादत पर जो हो रहा है क्या उसमें कहीं दया और संवेदना दिखाई दे रही है ? क्या हमारे देश के नेता जो इस पर कर रहे हैं क्या उस में कहीं संवेदना दिखाई दे रही है ? क्या सरकार इस पर जो कर रही है उसमें कोई संवेदना दिखाई दे रही है ?
पुलवामा हमले को लेकर कुछ सवाल तो बनते हैं जो सरकार से पूछा जाना चाहिए जिसे पूछे जाने की हिम्मत हमारी गोदी मीडिया में शायद नहीं है क्योंकि वह इस पर कवि सम्मेलन बिठाकर और पाकिस्तान से लोगों को बुलाकर इस पर डिबेट करती है और अपने टीआरपी बढ़ाने में लगी हुई है हर कोई अपना अपना टीआरपी बढ़ा रहा है सही सवाल पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पाता और जिन्होंने जुटाया है उन्हें या तो देशद्रोही कहा जाता है या देश विरोधी लेकिन जो भी हो कुछ सवाल तो आपके जेहन में भी आते होंगे सेना के अधिकारियों का मानना है कि जब भी सेना का कोई काफिला कहीं से गुजरता है तो एक हजार से अधिक सैनिक नहीं जा सकते हैं लेकिन पुलवामा में पच्चीस सौ से अधिक सैनिक काफिले में जा रहे थे क्यो?, अगर किसी कारणवश इतनी बड़ी संख्या में हमारे सैनिक जाते हैं तो उनको हवाई कवर दिया जाता है जो कि नहीं दिया गया क्यो?, वह कार जो आतंकी हमले में इस्तेमाल हुआ वह कहां से आया, 300 किलो से अधिक आरडीएक्स वहां कैसे पहुंचा, और सब से बड़ा सवाल यह है कि हमारे इंटेलिजेंस के द्वारा इस हमले की सूचना पीएमओ को थी तो उस पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं की गई ? ममता बनर्जी के सवाल भी अपनी जगह पर ठीक ही है जिसमें उन्होंने पूछा है कि यह आतंकी हमला जिसकी सूचना हमारी इंटेलिजेंस नें पहले से दे रखी थी उसको गंभीरता से क्यों नहीं लिया गया, और इलेक्शन से 2 महीने पहले ही क्यों हुआ ऐसे तमाम सवाल उन्होंने सरकार से पूछने की हिम्मत जुटाई । और शायद यह सवाल हम आपको भी सरकार से पूछने चाहिए ।
पुलवामा आतंकी हमले को क्या रोका जा सकता था ? और अगर इसे नहीं रोका गया तो क्या इसमें कोई वोट बैंक की राजनीति है यह तो साफ साफ नहीं कहा जा सकता लेकिन इस हमले के बाद हमारे जवानों की शहादत पर आज जो राजनीतिक दल राजनीति कर रहे हैं उसका उन्हें राजनीतिक फायदा होगा या नुकसान यह तो लोकसभा चुनाव के परिणाम ही तय करेंगे । पर आज हम अपनी सरकार से कम से कम इतनी उम्मीद तो कर सकते हैं कि वह इस हमले को गंभीरता से ले और कोई न कोई ठोस कदम उठाएं और आतंकवाद का अंत करें । और हमारी मीडिया भी इस हमले को लेकर जैसे लोगों को गुमराह करने की कोशिश की है, जिस तरह से इस हमले के मास्टरमाइंड को बदलने की कोशिश की गई इस पर टीआरपी बढ़ाने की कोशिश की गई ये ना करते हुए देश को वास्तविकता से अवगत कराए । इतनी उम्मीद तो हमें आपको इस सरकार और इस मीडिया से करनी ही चाहिए । हमें उम्मीद है और अपनी सेना पर पूरा विश्वास है कि सरकार इस पर चाहे कितनी भी राजनीति करें विपक्षी दल चाहे इस पर कितनी भी राजनीति करें लेकिन हमारी सेना अपने जवानों की शहादत को जाया नहीं जाने देंगे और बहुत जल्द इस पर कोई ना कोई ठोस कदम जरूर उठाएगी और हमें उसी का इंतजार है ।
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