Unemployment : A Critical Problem


Unemployment
Unemployment : A Critical Problem
हमारे देश में बेरोजगारी की समस्या दिन प्रतिदिन भयावह होती जा रही है और किसी भी राजनीतिक दल के पास इस गंभीर समस्या पर विचार करने का ना तो समय है, और ना ही वह जरूरी समझते हैं मौजूदा सरकार अपने एजेंडे में तो इसको शामिल ही नहीं करती,  शामिल करना तो दूर हमारे एक कद्दावर नेता तथा सरकार के वरिष्ठ नेताओं में शुमार जेटली जी का मानना है कि देश का युवा बेरोजगारी से बिल्कुल भी परेशान नहीं है, हमारे माननीय प्रधानमंत्री महोदय जी ने कल अपने 10 सूत्रीय भाषण में देश को बताया कि उन्होंने अपने शासनकाल में लाखों नौकरियां पैदा की है । उनके अपने आंकड़ों में 36 लाख नए ट्रकों की खरीदारी भी एक प्रकार का रोजगार है, और उससे भी रोजगार में वृद्धि हुई है ऐसा माननीय प्रधानमंत्री जी का मानना है । यह अलग बात है कि ट्रांसपोर्ट सेक्टर के लोगों का मानना है कि इस प्रक्रिया से कुछ नए ट्रकों की खरीद तो हुई है लेकिन इससे बेरोजगारी पर कोई असर नहीं पड़ा है प्रधानमंत्री जी लगातार उसे अपनी उपलब्धि गिना रहे हैं और देश को गुमराह कर रहे हैं । 
वास्तविक स्थिति तो देश की यह है की एक आंकड़ा जिसे नेशनल सैंपल सर्वे ने निकाला है उसके अनुसार 45 साल में बेरोजगारी सबसे अधिक है इस आंकड़े ने सरकार को परेशान कर रखा है, सरकार के नुमाइंदे और सरकार की पैरवी करने वाले लोग इससे परेशान हैं इस सर्वे को प्रकाशित नहीं किया गया जिसके विरोध में राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के दो सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया । सरकार अपनी ही डाटा को लेकर परेशान हैं । उस रिपोर्ट  पर बिजनेस स्टैंडर्ड के सुमेश झा ने रिपोर्ट छापी है कि 45 साल में बेरोजगारी इस वक्त सबसे अधिक है । सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन इकोनॉमी के महेश व्यास ने भी लगातार अपने रिपोर्ट में बता रहे हैं  कि नौकरी घट रही है बेरोजगारी बढ़ रही है मगर प्रधानमंत्री कल लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर जवाब देते हुए रोजगार के आंकड़े कुछ और ही बता रहे हैं ।
 नीति आयोग ने इस विषय में सरकार का बचाव करते हुए बताया की यह रिपोर्ट पूरी नहीं है जैसे ही रिपोर्ट पूरी आएगी प्रकाशित किया जाएगा । पर सच तो यह है कि सरकार के पास बेरोजगारी को लेकर के कोई आंकड़ा ही नहीं है और अगर है तो वह कहां है । सरकार रोजगार के मामले पर किसी तरह से बात करने को तैयार नहीं है छात्र सड़कों पर आंदोलन कर रहे हैं कल ऐसा ही एक आंदोलन दिल्ली में किया गया जिसमें तमाम राज्यों से  छात्र वहां पहुंचे। 
कल दिल्ली में हुए यंग इंडिया नेशनल कॉर्डिनेशन कमेटी के मार्च में दावा किया गया कि राज्यों को मिलाकर देश के सरकारी संस्थाओं में 70 लाख पद खाली हैं । केंद्र सरकार या उसके अधीन संस्थाओं में 24 लाख पद खाली हैं  देशभर के 20 से ज्यादा यूनिवर्सिटी के छात्र संघ और छात्रों ने इस मार्च में हिस्सा लिया तथा करीब 70 छात्र संगठन इस मार्च में शामिल हुए  इनका मुख्य मुद्दा तो बेरोजगारी था और मांग थी कि सरकार जीडीपी का 10 फ़ीसदी शिक्षा पर खर्च करे ।  6 जनवरी को यूपी में 69000 प्राथमिक शिक्षकों की परीक्षा हुई थी इसमें बीएड बीटीसी और शिक्षामित्रों ने आवेदन किया था यह लोग भी मार्च में आ गए थे ताकि सरकार का ध्यान उनकी तरफ जाए उनकी मांग है कि पर्चा लीक हो गया था यह लोग 31 दिन से इलाहाबाद में आयोग के दफ्तर के बाहर परीक्षा रद्द कराने की मांग को लेकर धरना दे रहे हैं ।  पूरे देश में यही स्थिति है छात्र सड़कों पर है । और भाषणों में सब ठीक बताया जा रहा है ।
 झारखंड के प्रभात अखबार के अनुसार झारखंड सरकार के विभिन्न 2 लाख 81 हजार पद खाली हैं मात्र 40.85 % कर्मचारियों के भरोसे सरकार काम कर रही है झारखंड सरकार में 4 लाख 73 हजार से अधिक पद स्वीकृत है मगर 60 फ़ीसदी के करीब पद खाली हैं ऐसे में यह समझ में नहीं आता की सरकार में कितने पदों के खाली होने के बाद सरकार काम कैसे कर पाती है । इस स्थिति को देखकर तो ऐसा य लगने लगा है किह सरकार बेरोजगारों को पैदा करने की मशीन बन चुकी है । यह आंकड़ा तो अभी सिर्फ एक राज्य का है अगर पूरे देश की  हम बात करें तो सोचिए स्थिति कितनी भयावह हो सकती है ।
  हमारी मौजूदा सरकार पिछले अंतरिम बजट में शिक्षा और बेरोजगारी की बात तक नहीं की और जो राजनीतिक दल आज बेरोजगारी को लेकर के बात कर रहे हैं उन्होंने इसे सिर्फ एक राजनीतिक और वोट बैंक का मुद्दा बना  रखा है ।

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