समाज का सच
आज हमारा समाज एक ऐसे चक्रव्यूह में फंसा हुआ है कि जब यह सोचा जाता है कि समाज का वास्तविक दुश्मन कौन है तो उसका जवाब तो नहीं मिलता लेकिन यह सोचते सोचते हम उसी चक्रव्यूह में इतनी गहराई तक फंस जाते हैं कि हमें घुटन महसूस होने लगता है और फिर हम सोचना बंद कर देते हैं । आज समाज को सबसे ज्यादा खतरा किनसे हैं ? उनसे ! जिन्हें मीडिया बताती हैं, या उनसे ! जिन्हें राजनेता बताते हैं, या फिर उनसे ! जिन्हें हम समझते हैं आज हमारे सामने भ्रम का एक जाल फैला हुआ है या यूं कहें कि फैलाया जा रहा है हम सही गलत का फैसला नहीं कर सकते हम यह सोच ही नहीं सकते कि वास्तव में समाज के सबसे बड़े दुश्मन कौन है या फिर हमें सोचने नहीं दिया जाता ।
आज हम एक संवेदना विहीन समाज में जी रहे हैं हमें लगता है कि आज समाज को उन से खतरा कम है जो गलत है उनसे ज्यादा है जो गलत को समझते हैं सब जानते हैं पर बोलते नहीं हैं वह कुछ करना नहीं चाहते हैं । इतिहास में ऐसी बहुत सारी घटनाएं हैं जो यह प्रमाणित करती हैं कि समाज को हमेशा उन से अधिक खतरा रहा है जो सब कुछ जानते हुए भी मौन रहे हैं महाभारत के होने का वास्तविक जिम्मेदार कौन थे मुझे लगता है कि दुर्योधन एक जरिया था लेकिन भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, गुरु कृपाचार्य तथा कर्ण जैसे महारथी उस युद्ध के लिए अधिक जिम्मेदार थे क्योंकि वह द्रोपदी के चीर हरण को रोक सकते थे वह अन्याय को देखते रहे और चुप रहे नतीजा पूरा विश्व जानता है । आज का समाज भी उसी दौर से गुजर रहा है आज का बुद्धिजीवी वर्ग भी भीष्म द्रोण कृपाचार्य और कर्ण जैसा हो चुका है वह आज के दुर्योधनों के अन्यायों पर मौन है और चीरहरणों को उसी खामोशी के साथ देख रहा है । आज कहीं कोई राष्ट्रविरोधी घटना होती है, भ्रष्टाचार होता है, देश को लूटा जाता है या फिर कहीं किसी नन्हीं परी को रौंदा जाता है तो आज की गोदी मीडिया उन घटनाओं का अपने टीआरपी के लिए इस्तेमाल करती हैं, राजनेता वोट के लिए उसको राजनीतिक तूक देते हैं, देश की जनता सोशल मीडिया पर अपना भड़ास निकालती है तथा बुद्धिजीवी वर्ग उसकी आलोचना करते हैं । वास्तविकता यह है कि किसी के किसी तरह के प्रतिक्रिया से कोई फर्क तो नहीं पड़ता है और यह घटनाएं बार बार दोहराई जाती हैं ।
आज सोशल मीडिया ने देश की जनता को इतना जागरुक कर दिया है कि उसे देश की सारी छोटी बड़ी घटनाएं पता रहती हैं वह व्हॉटसअप और फेसबुक जैसे साधनों से अपनी भड़ास तो निकाल लेता है लेकिन नतीजा हमेशा शून्य ही रहता है शुक्र है कि ब्रिटिश हुकूमत के समय यह साधन नहीं थे अगर होता तो शायद व्हॉटसअप यूनिवर्सिटी एक मैसेज प्रकाशित करती जिसमें यह लिखा होता कि आप अंग्रेजी हुकूमत से परेशान हैं अगर आप चाहते हैं कि अंग्रेज यहां से चले जाएं तो इस मैसेज को 10 लोगों को भेजो और इस तरह के मैसेज भेज भेज कर ही शायद हम आजादी पा लिए होते ।
ऐसा कहा गया है कि जिस मनुष्य को ज्ञान प्राप्त हो जाता है वह मनुष्य समाज के मोह माया से मुक्त हो जाता है उसे सुख दुख का अनुभव नहीं रह जाता उसे कोई चीज दुखी नहीं कर सकता उसे कोई चीज अत्यधिक खुश नहीं कर सकता वह वैराग्य की अवस्था में आ जाता है अब हमारी समझ में यह नहीं आता कि ऐसा कहने वाले लोगों के लिए ज्ञान की परिभाषा क्या है क्योंकि मुझे ऐसा लगता है कि समाज में रहकर जो व्यक्ति समाज से अलग रहता है या फिर समाज के काम नहीं आ सकता वह किसी जानवर से कम तो नहीं है अब जानवर ज्ञानी होता है या अज्ञानी यह तो वही बता सकते हैं जो ज्ञान को वैराग्य से या मोह माया से मुक्त होना बताते हैं ।
आज हमारे समाज में लाखों बुद्धिजीवी लोग हैं जो ढेर सारी डिग्रियां हासिल करने के बाद किसी न किसी उच्च पदों पर आसीन है वह समाज में हो रही सभी गलतियों को जानते हैं और समझते हैं और अपने घरों में बैठकर चर्चा भी करते हैं । और फिर राजनीति की आलोचना करके सो जाते हैं । हम अपने आसपास देखे तो इस समाज में बहुत से ऐसे विद्वान लोग मिलेंगे जिन्हें देखकर यह लगेगा कि यह हमसे तो कहीं ज्यादा विद्वान है वह बड़ी-बड़ी बातें भी करेंगे समझदारी के बात भी करेंगे उनकी सभी बातें आपको सही भी लगेंगी और सब कुछ जानने के बाद अंत में वह अपने कामों में व्यस्त हो जाते हैं और इस पूरी कहानी में सबसे मजेदार बात तो यह है कि अगर समाज को बदलने की कोई कोशिश करता है या उसके लिए कोई कार्य करता है तो वहीं विद्वान लोग उसे पागल मुर्ख यह बेफिजूल का कार्य कह कर उसकी आलोचना भी करते हैं और अगर संभव हो तो उसकी टांग भी खींचते हैं ।
हमारी नजर में अगर कोई व्यक्ति अनपढ़ है तो हो सकता है वह समाज में हो रहे गलतियों को नहीं देख पा रहा हो या नहीं समझ पा रहा हो लेकिन अगर कोई पढ़ा-लिखा समझदार व्यक्ति जिसे आज का भ्रमित समाज बुद्धिजीवी वर्ग कहता है वह समाज की गलतियों को देख रहा है समझ रहा है इसके बाद भी कुछ बोल नहीं रहा है तो वह उस अनपढ़ व्यक्ति से भी ज्यादा मूर्ख है ऐसा मुझे लगता है । इस हिसाब से आज के समाज में दो तरह के लोग पाए जा रहा है एक वह है जो पढ़े लिखे ही नहीं है जिन्हें हम अनपढ़ कहते हैं और एक वह है जो पढ़े लिखे हैं समझदार हैं डिग्रीधारी हैं उच्च पदों पर बैठे हुए हैं लेकिन उस समाज के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं समाज में हो रहे अन्याय अत्याचारों को देख रहे हैं ऐसे व्यक्तियों को कुपढ़ो किस श्रेणी में रख सकते हैं । और आज हमारा समाज इन्हीं कूपढ़ो से भरता जा रहा है ।
आज हमारे समाज में जिस तरीके से सोशल मीडिया का प्रयोग हो रहा है वह समाज के लिए जहर का काम कर रहा है सोशल मीडिया को समाज में हो रहे अच्छे बुरे कामों को समाज तक पहुंचाने का काम था । आज उसका प्रयोग अंधविश्वास हिंदू मुस्लिम जैसे सांप्रदायिक मुद्दों की तरफ भटकाने में किया जा रहा है काम के सभी मुद्दे तो सोशल मीडिया पर आलोचना के विषय बन कर रह गए है । आज के युवा को इस सोशल मीडिया के जाल में इस तरह फंसा दिया गया है कि वह देश के लिए कुछ करना तो दूर वह अपने बारे में भी कुछ अच्छा नहीं कर सकता । देश में व्यवस्था परिवर्तन की जरूरत है लेकिन कौन करें जो इस आवश्यकता को समझ रहे हैं वह कुछ करना नहीं चाहते और जो नहीं समझ रहे हैं वह सोशल मीडिया पर सांप्रदायिक मुद्दों में उलझे हुए हैं ।
आज समाज का वह कथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग जो देश कि किसी बड़ी परीक्षा मैं आए दहेज के सवाल पर एक अच्छा खासा लंबा चौड़ा लेख लिखकर किसी उच्च पद को प्राप्त कर लेता है और वही व्यक्ति अपनी ही शादी में लाखों रुपए दहेज की मांग करता है और वही व्यक्ति दहेज ले लेने के बाद दहेज के विरोध में लोगों को ज्ञान बांटता है आज हमारा समाज इसी प्रकार के तथाकथित बुद्धिजीवियों की वजह से एक ऐसे दलदल में फंसा जा रहा है जिससे निकलना लगभग नामुमकिन सा लगने लगा है ।
आज हमारे देश की स्थिति कुछ इस तरह से हो गई है कि यहां पर भ्रष्टाचार को लेकर के कोई व्यक्ति राजनीति में आता है और कुछ ही समय बाद पता चलता है कि वह व्यक्ति सबसे ज्यादा भ्रष्टाचारी हो चुका है । महिला सुरक्षा की बात करने वाले लोग ही सबसे ज्यादा महिला शोषण के आरोप में फंसे हुए हैं । राम के नाम पर राजनीति शुरू होती है जिससे राम को तो कोई फायदा नहीं होता लेकिन इनके नाम पर राजनीति करने वाले लोग सत्ता में आ जाते हैं और फिर देश की जनता को बेवकूफ बनाते हैं । दलित पिछड़े और गरीब के नाम पर राजनीति की जाती है और राजनीति करने वाले करोड़ों रुपए के मालिक हो जाते हैं । और देश के बुद्धिजीवी वर्ग सब जानते हुए भी मौन रहते हैं और उन्हें लगता है कि सब ठीक चल रहा है क्योंकि उनकी जीवन में सब ठीक चल रहा होता है कहा जाता है कि समस्या जब तक व्यक्तिगत ना हो कोई कुछ नहीं करता ।
अगर हमारे समाज के बुद्धिजीवी वर्गों की सोच इसी तरह बनी रही तो वह दिन दूर नहीं है जब समाज में हर तरफ अराजकता की स्थिति होगी कोई किसी के बारे में नहीं सोचेगा सब अपना अपना काम कर रहे होंगे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे होंगे और देश के यह लुटेरे नेता देश को लूटने में लगे होंगे और हम अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे होंगे फिर समस्या व्यक्तिगत हो या फिर देश की हो हम कुछ नहीं कर पाएंगे क्योंकि हम भी उसी संवेदना विहीन और भ्रष्टाचारी समाज का हिस्सा बन चुके होंगे ।
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