हमारे देश में राजनीति का जो दौर चल रहा है वह पूर्णतया संवेदना विहीन और नीति विहीन हो चुका है इस प्रकार की राजनीति भारतीय राजनीति के इस दौर को पतन की तरफ ले कर जाएगी और इस राजनीतिक युग का अंत होगा तथा एक नए युग का आरंभ होगा और होना जरूरी भी है । इस समय देश की राजनीति दो खेमों में बट कर रह गई है एक मोदी समर्थित और दूसरी तरफ मोदी विरोधी जो किसी भी हाल में मोदी को सत्ता से हटाना चाहते हैं और इसके लिए वे अपनी सारी नीतियां ताक पर रखकर महागठबंधन की राह पर चल रहे हैं । महागठबंधन में आज 20 से 22 राजनीतिक दलों का समावेश हो चुका है इन सभी राजनीतिक दलों की नीतियां अलग थी, विचार अलग थे, बातें अलग थी, वादे अलग थे, लेकिन आज इन सब का एक ही मुद्दा है बस मोदी को सत्ता से किस तरह हटाया जाए और इसके लिए वे अपनी सभी नीतियों का त्याग कर एक ही मंच पर आने को मजबूर हुए हैं ।
इस बार देश को व्यापक पैमाने पर लूटने का सभी राजनीतिक दलों द्वारा अथक प्रयास का प्रारंभ किया जा चुका है महागठबंधन ने यह साबित कर दिया है कि किसी भी राजनीतिक दल के किसी भी राजनेता को अपनी नीतियों अपने वादे अपनी विचारधारा का बिल्कुल भी ख्याल नहीं है उन्हें ख्याल है तो सिर्फ अपने फायदे का और इसके लिए किसी के साथ मिलने किसी के साथ गठबंधन करने के लिए सज्ज है । आज भारत के किसी भी राजनीतिक दल में इतना सामर्थ्य नहीं है कि वह देश की वास्तविक और जरूरी मुद्दों को मुद्दा बनाकर राजनीति कर सकें चुनाव लड़ सके और सरकार बना सके इसलिए वह देश को गुमराह करने वाले यहां के भोली - भाली जनता को गुमराह करने वाले मुद्दों को राजनीति का विषय बना कर वोटों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश में लगे हुए हैं ।
कोई अपने गिरेबान में बिना झाके मौजूदा सरकार की नाकामियों को मुद्दा बनाकर राजनीतिक दांव खेल रहा है तो मौजूदा सरकार अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए एक बार फिर धर्म की राजनीति से अपने आप को बचाने की कोशिश कर रही है अब देखना यह है कि भगवान राम इस बार किसके साथ है ।
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